उप्र में बिजली के निजीकरण के विरोध में देशभर में विरोध प्रदर्शन
मंत्रिमंडलीय उप समिति के साथ हुए संघर्ष समिति के लिखित समझौते का खुला उल्लंघन
उत्तर प्रदेश में बिजली के निजीकरण के विरोध में आज देश के सभी प्रांतों में जिला मुख्यालयों पर बिजली कर्मचारियों ने विरोध प्रदर्शन किया और उत्तर प्रदेश सरकार से मांग किया कि कर्मचारियों के और आम उपभोक्ताओं के हित में बिजली के निजीकरण का प्रस्ताव वापस लिया जाए। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में 06 दिसंबर की संवेदनशीलता को देखते हुए निजीकरण के विरोध में सभाएं 07 दिसंबर को आयोजित की जाएगी। संघर्ष समिति ने पॉवर कॉरपोरेशन पर आरोप लगाया है कि प्रबंधन हड़ताल का वातावरण बनाकर प्रदेश के ऊर्जा क्षेत्र में अनावश्यक तौर पर औद्योगिक अशांति उत्पन्न कर रहा है। प्रबंधन के क्रियाकलापों से ऐसा प्रतीत होता है कि प्रबंधन बिजली कर्मचारियों पर अनचाहे हड़ताल थोप देना चाहता है।
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने आज यहां बताया कि बिजली के निजीकरण के विरोध में कर्मचारी और उपभोक्ताओं के हितों को देखते हुए देश भर के 27 लाख बिजली कर्मचारियों ने आज सड़क पर उतरकर विरोध दर्ज किया है। उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारियों में अपने भविष्य को लेकर भारी चिंता है ।उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारी 07 दिसंबर को प्रदेश भर में जनपद मुख्यालय पर कार्यालय समय के उपरांत अथवा भोजन अवकाश के समय विरोध सभाएं करेंगे।
पावर कार्पोरेशन प्रबंधन ने विरोध सभा को लेकर हड़ताल का कंट्रोल रूम बनाना ,जिला अधिकारियों को हड़ताल का मैसेज देना और खुद चेयरमैन द्वारा प्रतिदिन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हड़ताल से निपटने की तैयारी करना, यह सब देखकर ऐसा लगता है की पावर कार्पोरेशन प्रबंधन को कर्मचारी और उपभोक्ताओं के हित की कोई चिंता नहीं है और प्रबंधन प्रदेश में बिना किसी हड़ताल नोटिस के हड़ताल का वातावरण बना रहा है और अनचाहे बिजली कर्मचारियों पर हड़ताल थोप देना चाहता है ।संघर्ष समिति ने इस संबंध में प्रदेश के ऊर्जा मंत्री से अपील की है कि वह तत्काल हस्तक्षेप करें और बिजली कर्मचारियों का लोकतांत्रिक ढंग से विरोध करने के अधिकार का हनन न होने दे।
लिखित समझौते का खुला उल्लंघन
संघर्ष समिति ने कहा की 05 दिसंबर को जिस प्रकार गैरकानूनी ढंग से पावर कार्पोरेशन प्रबंधन ने पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम कि निजीकरण का प्रस्ताव पारित किया है वह कर्मचारी विरोधी तो है ही, 06 अक्टूबर 2020 को मा वित्त मंत्री श्री सुरेश कुमार खन्ना जी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडलीय उप समिति के साथ हुए संघर्ष समिति के लिखित समझौते का खुला उल्लंघन है। इस समझौते में लिखा गया है "विद्युत वितरण निगमों की मौजूदा व्यवस्था में ही कर्मचारियों को विश्वास में लेकर सुधार किया जाएगा। प्रदेश में ऊर्जा क्षेत्र में कहीं भी कोई निजीकरण कर्मचारियों को विश्वास में लिए बिना नहीं किया जाएगा।"
इसके पूर्व 05 अप्रैल, 2018 को तत्कालीन ऊर्जा मंत्री श्रीकान्त शर्मा के साथ हुए लिखित समझौते में भी यही लिखा है कि " उप्र के ऊर्जा क्षेत्र में किसी भी प्रकार का कोई निजीकरण कर्मचारियों को विश्वास में लिए बिना नहीं किया जाएगा।" इतने उच्च स्तर पर हुए इन दोनों समझौतों का खुला उल्लंघन करते हुए निजीकरण का प्रस्ताव पारित कर प्रबंधन ने ऊर्जा क्षेत्र में अनावश्यक तौर पर औद्योगिक अशांति पैदा करने का काम किया है।
दंडात्मक कार्यवाही शुरू
संघर्ष समिति ने कहा कि अत्यधिक कम वेतन पाने वाले आउट सोर्स निविदा कर्मचारियों का कार्यालय समय के बाद सभा में भाग लेने के नामपर उत्पीड़न किया जा रहा है और कई संविदा कर्मियों की सेवाएं समाप्त कर दी गई हैं। इस प्रकार प्रदेश के ऊर्जा निगमों में पॉवर कारपोरेशन भय का वातावरण बना रहा है। संघर्ष समिति ने एक बार पुनः कहा कि घाटे के झूठे आंकड़े देकर और भय का वातावरण बनाकर निजीकरण थोपने की कोशिश की जा रही है जिसे बिजली कर्मी कभी स्वीकार नहीं करेंगे।
ये रहे मौजूद
राजीव सिंह, जितेन्द्र सिंह गुर्जर, गिरीश पांडेय, महेन्द्र राय,सुहैल आबिद, पी.के.दीक्षित, राजेंद्र घिल्डियाल, चंद्र भूषण उपाध्याय, आर वाई शुक्ला, छोटेलाल दीक्षित, देवेन्द्र पाण्डेय, आर बी सिंह, राम कृपाल यादव, मो वसीम, मायाशंकर तिवारी, राम चरण सिंह, मो0 इलियास, श्री चन्द, सरयू त्रिवेदी, योगेन्द्र कुमार, ए.के. श्रीवास्तव, के.एस. रावत, रफीक अहमद, पी एस बाजपेई, जी.पी. सिंह, राम सहारे वर्मा, प्रेम नाथ राय एवं विशम्भर सिंह आदि मौजूद रहे।