निजीकरण के मामले ने योगी सरकार की विश्वसनीयता पर उठाये सवाल

निजीकरण का निर्णय वापस लेने का प्रस्ताव प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री  को भेजा गया,17 दिसंबर को आगरा में होगी "बिजली पंचायत"

निजीकरण के मामले ने योगी सरकार की विश्वसनीयता पर उठाये सवाल

नई दिल्ली- मार्च 2023 में उत्तर प्रदेश में बिजलीकर्मियों की हड़ताल ख़त्म कराने के दौरान किये गए समझौते के विपरीत बिजलीकर्मियों के खिलाफ जमकर दंडात्मक कारवाई की गयी थी। हड़ताल में शामिल दर्जनों नेता आज भी कानूनी सहित विभागीय कार्यवाही झेल रहे हैं। जबकि हड़ताल ख़त्म होने के दौरान ऊर्जा मंत्री ने आन्दोलन के फलस्वरूप बिजली कर्मियों के विरूद्ध की गयी समस्त दमनात्मक कार्यवाहियों निलम्बन, निष्कासन, एफआईआर आदि वापस लेने हेतु ऊर्जा निगमों के चेयरमैन एम देवराज को निर्देश जारी कर दिये थे,लेकिन उसके बाद तमाम कार्यवाहियों ने योगी सरकार की विश्वसनीयता पर गहरा आघात पहुंचाया था। अब उत्तर प्रदेश के दो विधुत वितरण निगमों के निजीकरण की प्रक्रिया में योगी सरकार की विश्वसनीयता पर पुनः सवाल उठ रहे हैं। खासकर पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के नए प्रयास पुनः योगी सरकार की विश्वसनीयता का इम्तिहान ले रहे हैं। 

पूर्व निर्धारित वाराणसी की बिजली पंचायत में विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि चार वर्ष पूर्व भी वर्ष 2020 में पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का निर्णय लिया गया था। संघर्ष समिति से वार्ता के बाद उप्र के वित्त मंत्री सुरेश खन्ना एवं तत्कालीन ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा के साथ 06 अक्टूबर 2020 को हुए लिखित समझौते में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का निर्णय वापस लिया जाता है। समझौते में यह भी लिखा गया है कि उप्र के ऊर्जा निगमों में कर्मचारियों को विश्वास में लिए बिना कहीं पर भी किसी प्रकार का निजीकरण नहीं किया जाएगा। संघर्ष समिति ने कहा कि अब निजीकरण का यह एकतरफा लिया गया निर्णय इतने बड़े स्तर पर हुए लिखित समझौते का खुला उल्लंघन है जो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।

वाराणसी की बिजली पंचायत ने एक स्वर से पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण को अस्वीकार कर दिया और सरकार से मांग की कि निजीकरण का प्रस्ताव उपभोक्ताओं और कर्मचारियों के हित में तत्काल वापस लिया जाय जिससे ऊर्जा निगमों में अनावश्यक तौर पर औद्योगिक अशांति न हो। बिजली पंचायत के बाद उपभोक्ताओं और कर्मचारियों ने शान्ति पूर्वक पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के मुख्यालय तक पैदल मार्च किया। मुख्यालय पर ज्ञापन लेने के लिए प्रबंधन का कोई अधिकारी उपलब्ध नहीं था। अतः संघर्ष समिति के निर्देश पर सभी लोग शांति पूर्वक वापस चले गए।  

21 जनपदों की जमीन मात्र एक रुपए में 

संघर्ष समिति ने कहा कि निजीकरण एक बड़ी साजिश है। आर एफ पी डॉक्यूमेंट जारी होते ही इस साजिश का खुलासा हो जाएगा। मात्र एक रुपए में पूरे 21 जनपदों की जमीन निजी घरानों को सौंपना किसके हित में है, यह सभी समझते हैं। संघर्ष समिति ने कहा कि अरबों खरबों रुपए की पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम की परिसंपत्तियों का सी ए जी से आडिट कराए बिना मात्र 1500 करोड़ रुपए की रिजर्व प्राइस के आधार पर निजीकरण करने का क्या मतलब है? संघर्ष समिति ने आरोप लगाया कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम की और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम की अरबों रुपए की परिसंपत्तियों को कौड़ियों के मोल निजी कम्पनी को बेचा जा रहा है जिसे न कर्मचारी स्वीकार करेंगे और न ही आम उपभोक्ता।

बिजली की दर बढ़ना तय 

संघर्ष समिति ने कहा कि निजीकरण से सबसे बड़ी चोट उपभोक्ताओं पर पड़ने वाली है। मुंबई में टाटा पावर और अडानी पावर काम करती हैं। मुंबई में घरेलू उपभोक्ताओं की बिजली की दरें 17-18 रुपए प्रति यूनिट है। उप्र में घरेलू उपभोक्ताओं की अधिकतम बिजली दर रु 06.50 प्रति यूनिट है। स्पष्ट है कि निजीकरण होते ही उप्र में किसानों और घरेलू उपभोक्ताओं के लिए बिजली की दर तत्काल 10 रु प्रति यूनिट या अधिक हो जाएगा।  

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पीएम और सीएम को भेजा गया प्रस्ताव     

वाराणसी में हुई विशाल बिजली पंचायत में पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का निर्णय वापस लेने का प्रस्ताव पारित कर वाराणसी के सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेजा गया। बिजली पंचायत में  हजारों की संख्या में बिजली कर्मी और आम उपभोक्ता सम्मिलित हुए। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उप्र ने ऐलान किया कि आगामी 17 दिसंबर को आगरा में कर्मचारियों, किसानों और घरेलू उपभोक्ताओं की बिजली पंचायत आयोजित की जाएगी।

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