डीआरडीओ ने पीजीसीआईएल को सौंपी अत्यधिक ऊंचाई पर निर्वाह की तकनीक

डीआरडीओ ने पीजीसीआईएल को सौंपी अत्यधिक ऊंचाई पर निर्वाह की तकनीक

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के तहत काम करने वाली अग्रणी प्रयोगशाला डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ फिजियोलॉजी एंड अलाइड साइंसेज (डीआईपीएएस) ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (पीजीसीआईएल) को हाई-एल्टीट्यूड सस्टेनेंस टेक्नोलॉजी सौंपी। यह तकनीक जम्मू स्थित पीजीसीआईएल के क्षेत्रीय मुख्यालय में आयोजित एक उन्मुखीकरण (ओरिएंटेशन) कार्यशाला के दौरान सौंपी गई।

यह कार्यशाला लद्दाख में 5000 मेगावाट क्षमता वाली पैंग-कैथल हाई वोल्टेज डायरेक्ट करंट (एचवीडीसी) परियोजना के हिस्से के रूप में आयोजित की गई, जिसका उद्देश्य कर्मचारियों को अत्यधिक ऊंचाई पर काम करने के लिए तैयार करना है। 15,760 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह परियोजना भारत के राष्ट्रीय ग्रिड में सौर ऊर्जा के व्यापक एकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो लद्दाख क्षेत्र में ऊर्जा सुरक्षा को सुदृढ़ बनाएगी।

डीआईपीएएस की भूमिका और प्रौद्योगिकियों का महत्व

डीआईपीएएस ने पहले भारतीय सेना के लिए हिमालय क्षेत्र में अत्यधिक ऊंचाई वाले इलाकों के लिए अनुकूलन प्रोटोकॉल तैयार किए हैं। इसी अनुभव को आधार बनाते हुए, उन्होंने पीजीसीआईएल के लिए भी विभिन्न हाई-एल्टीट्यूड सस्टेनेंस टेक्नोलॉजी विकसित की हैं, जिनमें शामिल हैं:

-पोषण संबंधी राशन स्केल
-सुरक्षात्मक कपड़े
-गैर-पारंपरिक ऊर्जा-आधारित आश्रय
-ठंड की वजह से होने वाले घाव की रोकथाम की क्रीम

इन प्रौद्योगिकियों के उपयोग से पीजीसीआईएल के कर्मचारी अत्यधिक ऊंचाई वाली कठोर परिस्थितियों में भी काम करने में सक्षम होंगे।

डीआरडीओ और पीजीसीआईएल के बीच पहले ही एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए जा चुके हैं, जिसके तहत यह तकनीकी सहयोग किया जा रहा है।

हाई-एल्टीट्यूड सस्टेनेंस टेक्नोलॉजी क्या है?

हाई-एल्टीट्यूड सस्टेनेंस टेक्नोलॉजी एक विशेष प्रकार की प्रौद्योगिकी है जो ऊंचाई वाले स्थानों में इंसानों के जीवित रहने और काम करने के लिए अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करती है। इन तकनीकों को खास तौर पर कठोर मौसम और वातावरण के बीच शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए विकसित किया गया है।

इसमें निम्नलिखित तकनीकों और समाधानों को शामिल किया गया है:

शारीरिक अनुकूलन प्रोटोकॉल: ऊंचाई पर शरीर को अनुकूल बनाने के लिए व्यायाम और पोषण संबंधी योजनाएँ।
विशेष भोजन और पोषण योजना: शरीर को ऊर्जा देने के लिए उच्च कैलोरी वाले खाद्य पदार्थ।
ठंड से सुरक्षा प्रौद्योगिकी: सुरक्षात्मक कपड़े और क्रीम जो अत्यधिक ठंड में शरीर को सुरक्षित रखते हैं।
ऊर्जा-आधारित आश्रय: ऐसे आश्रय जो ऊर्जा की कम खपत के बावजूद गर्मी और आराम प्रदान करते हैं।
कठोर जलवायु के लिए चिकित्सा समाधान: ऊंचाई पर होने वाली बीमारियों और घावों से बचने के लिए दवाएँ और उपचार।
इन तकनीकों के लाभ
स्वास्थ्य सुरक्षा: उच्च ऊंचाई पर काम करने वालों को ठंड, ऑक्सीजन की कमी, और कठोर परिस्थितियों में होने वाली बीमारियों से बचाने में मदद मिलती है।
काम की उत्पादकता: कर्मचारियों की उत्पादकता और कार्य क्षमता में सुधार होता है।
ऊर्जा की बचत: गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करके, ऊर्जा की बचत होती है और पर्यावरण के अनुकूल समाधानों को अपनाया जाता है।
मानव सुरक्षा: कठिन परिस्थितियों में कार्यबल को शारीरिक रूप से फिट और सुरक्षित बनाए रखने में सहायक होती है।

डीआरडीओ द्वारा विकसित की गई हाई-एल्टीट्यूड सस्टेनेंस टेक्नोलॉजी न केवल लद्दाख में पीजीसीआईएल की एचवीडीसी परियोजना के सफल क्रियान्वयन में मदद करेगी, बल्कि भारत के अन्य उच्च ऊंचाई वाले इलाकों में भी इसके सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलेंगे। यह परियोजना भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए एक मील का पत्थर साबित होगी।

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