भारत ने 2025 तक टीबी को समाप्त करने का लिया संकल्प

 भारत ने 2025 तक टीबी को समाप्त करने का लिया संकल्प

नई दिल्लीः-केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण व रसायन और उर्वरक मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने इंडोनेशिया के योग्याकार्ता में आयोजित जी20 स्वास्थ्य मंत्रियों की बैठक के उद्घाटन सत्र को वर्चुअल माध्यम से संबोधित किया। इंडोनेशिया ने योग्याकार्टा और लोम्बोक में दो स्वास्थ्य कार्य समूह की बैठकों की मेजबानी की है। इनमें प्राथमिकता में शामिल मुद्दों- 'वैश्विक स्वास्थ्य प्रोटोकॉल मानकों का समन्वय' व 'वैश्विक स्वास्थ्य प्रणाली के लचीलेपन का निर्माण' पर चर्चा की गई और उन पर विचार-विमर्श किया गया। डॉ. मनसुख मांडविया ने इस बैठक में टीबी व वन हेल्थ के मुद्दे को प्राथमिकता देने और कार्यक्रम आयोजित करने के लिए इंडोनेशिया के राष्ट्रपति को धन्यवाद दिया। भारत ने 2030 के वैश्विक एसडीजी लक्ष्य से पांच साल पहले यानी 2025 तक टीबी को समाप्त करने का संकल्प लिया है।

डॉ. मांडविया ने महामारी की स्थिति और स्वास्थ्य शासन में प्रणालीगत परिवर्तन की जरूरत को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “मौजूदा महामारी ने पूरे विश्व में, विकसित और विकासशील देशों की स्वास्थ्य प्रणालियों के सामने कई चुनौतियां उत्पन्न की हैं। मौजूदा महामारी ने वैश्विक स्वास्थ्य शासन में कमियों को उजागर किया है और वैश्विक स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करने के महत्व को रेखांकित किया है। मौजूदा महामारी के प्रबंधन में प्राप्त अनुभव को देखते हुए स्वास्थ्य इकोसिस्टम का आकलन करने, स्वास्थ्य वित्तपोषण और और उनके जुड़ाव की जरूरत को मजबूत किया है।

कोविड-19 संक्रमण के मामलों की कम होती संख्या को देखते हुए डॉ. मांडविया को इसकी उम्मीद है कि इस महामारी का अंत निकट है। उन्होंने कहा कि भारत स्वास्थ्य डेटा की पारस्परिकता के लिए इसके व्यापक अनुप्रयोग सहित टीका प्रमाणपत्रों की पारस्परिक मान्यता के लिए सहमत है। उन्होंने आगे कहा, "देश के भीतर और वैश्विक स्तर पर डेटा की निर्बाध पारस्परिकता और देशांतरीय इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड के निर्माण को सक्षम करने के लिए डिजिटल स्वास्थ्य डेटा प्रणाली को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है।" इसके अलावा डॉ. मांडविया ने जी20 सदस्यों को एक संस्थागत ढांचे के निर्माण लिए सुझाव दिया, जिससे देशों के बीच एक तटस्थ और समग्र डेटा-साझाकरण मॉडल के साथ जीनोम सिक्वेंसिंग डेटा को तेजी से साझा किया जा सके। यह नागोया प्रोटोकॉल के ढांचे के तहत समान लाभ साझा करने वाले कई रोगाणुओं में किया जा सकता है।

केन्द्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री ने स्‍वास्‍थ्‍य आपात्कालीन प्रबंधन के लिए एक समावेशी, तेज और उत्तरदायी ढांचे की पैरवी की, जो निगरानी के वैश्विक तंत्र, टिकाऊ वित्तीय पोषण और चिकित्सा रोकथाम उपायों के समान वितरण द्वारा समर्थित है। उन्होंने कहा, "विश्व के जीडीपी में जी20 देशों का हिस्सा 80 फीसदी है और वैश्विक सीमा- पार व्यापार में भी 80 फीसदी हिस्सा है, इसलिए जी20 का जुड़ाव व नेतृत्व, वैश्विक स्वास्थ्य संरचना और भविष्य की किसी भी स्वास्थ्य आपात स्थिति के प्रबंधन को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण होगा।"

डॉ. मांडविया ने वैश्विक स्वास्थ्य सुधारों में एक सदस्य राष्ट्र-संचालित प्रक्रिया के रूप में डब्ल्यूएचओ की केंद्रीयता और महत्व को दोहराया। उन्होंने वैश्विक स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करने को लेकर 75वीं विश्व स्वास्थ्य सभा के दौरान चर्चा किए गए प्रस्तावों को जी20 के स्तर पर भी चर्चा में शामिल किए जाने का प्रस्ताव रखा। यह किसी भी दोहराव से बचने और एक मजबूत ढांचे के निर्माण में सहायता करेगा। उन्होंने डब्ल्यूएचओ की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने की तत्काल जरूरत पर भी जोर दिया, जिससे डब्ल्यूएचओ की वित्तीय स्थिरता की दिशा में काम करने की आवश्यकता के अलावा इसे 'उद्देश्य के लिए उपयुक्त' बनाया जा सके।

अंत में, डॉ. मांडविया ने वैश्विक सहयोग की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने सदस्यों से अनुरोध किया कि निर्बाध सीमा-पार यात्रा में सहायता के लिए टीका प्रमाणपत्र की पारस्परिक मान्यता की दिशा में काम करके वैश्विक स्वास्थ्य लचीलापन का निर्माण किया जाना चाहिए और अनुसंधान नेटवर्क व एम-आरएनए विनिर्माण केंद्र के विस्तार और वैश्विक दक्षिण (दक्षिणी अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ओसिनिया) पर विशेष ध्यान देने के साथ चिकित्सा रोकथाम उपायों के विनिर्माण के वितरण की जरूरत है।

डॉ. मांडविया ने वैश्विक दक्षिण की सहायता करने और असमानताओं को दूर करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों की सहायता करने के लिए एक तंत्र का निर्माण किया जाना चाहिए। डॉ. मांडविया ने बताया कि यह अनुसंधान व विनिर्माण क्षमताओं को मजबूत करने और चिकित्सा रोकथाम के उपायों के समान वितरण के माध्यम से किया जा सकता है। उन्होंने कहा, "जी20 देशों को विशेष रूप से वैश्विक दक्षिण में वीटीडी अनुसंधान, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और क्षेत्रीय विनिर्माण केंद्रों के लिए एक इकोसिस्टम स्थापित करने को प्राथमिकता देनी चाहिए। इस प्रयास का भारत भी समर्थन करेगा और अपनी विनिर्माण व अनुसंधान क्षमता का विस्तार करके वैश्विक दक्षिण में एक एम-आरएनए टीका केंद्र विकसित करने के लिए सक्रिय रूप से सहयोग करेगा। यह वैश्विक दक्षिण को भविष्य के स्वास्थ्य खतरों का प्रभावी ढंग से सामना करने में सहायता करेगा।”

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