यूपी सरकार ने बिजलीकर्मियों की संभावित हड़ताल से निपटने की रणनीति बनाई
निजीकरण पर संघर्ष तेज
फाइल फोटो
दक्षिणांचल और पूर्वांचल डिस्कॉम के निजीकरण को लेकर यूपी सरकार ने मोर्चेबंदी शुरू कर दी है। बिजलीकर्मियों के आंदोलन के इतिहास को देखते हुए सरकार इस बार सभी वैकल्पिक व्यवस्थाओं में जुट गयी है। खासकर हड़ताल की स्थिति में विधुत आपूर्ति प्रभावित नहीं हो इसके लिए मानव संसाधन तेज कर दिया है। उ०प्र० पावर कारपोरेशन प्रबंधन दूसरे विभागों को पत्र लिख संभावित हड़ताल पर अपेक्षित सहयोग के लिए तैयार रहने को कह रहा है। कार्पोरेशन के अध्यक्ष डॉ आशीष कुमार गोयल द्वारा भेजे गए पत्र से स्पष्ट है कि सरकार मान रही है कि पुनः बिजलीकर्मियों की हड़ताल हो सकती है। अब दूसरे विभागों के इलेक्ट्रिकल कर्मचारियों और अधिकारियों की सूची मांगी गयी है।
डॉ गोयल द्वारा सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि "प्रदेश की विद्युत व्यवस्था में सुधार हेतु रिफार्म प्रक्रिया की जानी है। यद्यपि इस रिफार्म प्रक्रिया से अधिकारी/कर्मचारी संगठनों से वार्ता कर उनको ऊर्जा क्षेत्र की स्थिति से अवगत करा दिया गया है तदापि संगठनों द्वारा रिफार्म प्रक्रिया के विरुद्ध हड़ताल 'आदि के कार्यवाही से इंकार नहीं किया जा सकता। उक्त सम्भावित परिस्थितियों के दृष्टिगत विद्युत व्यवस्था बनाये जाने हेतु सम्भावित हड़ताल से निपटने की तैयारी किया जाना आवश्यक है।
ये भी पढ़ें- 24 घंटा बीतने से पहले ही विद्युतकर्मियों की हड़ताल का दिखा असर
पिछले वर्ष बिजलीकर्मियों की हड़ताल से विधुत आपूर्ति व्यवस्था मात्र 50 घंटों में चरमरा गयी थी। हालांकि हड़ताल केवल 72 घंटों की थी लेकिन विधुत संकट को देखते हुए सरकार के निवेदन पर हड़ताल को 65 घंटे में वापस ले लिया गया था। जिसके बाद विधुत आपूर्ति को सामान्य करने में कई दिन लग गए थे। ऐसे अतीत को देखते हुए प्रदेश सरकार ज्यादा रिस्क नहीं लेने के मूड में है। हालांकि विधुत उत्पादन से लेकर आपूर्ति का मामला पूरी तरह तकनीकी आधारित होने के कारण सरकार सहित उसका आईएएस प्रबंधन अंतिम में अक्सर फेल हो जाता है।
वितरण निगमों के साथ उत्पादन निगम और पारेषण निगम का भी सम्पूर्ण निजीकरण करने की योजना
डिस्कॉम के निजीकरण के मामले में बिजली कर्मी किसी कीमत पर निजीकरण स्वीकार नहीं करने का एलान कर दिया है और कहा है कि सभी लोकतांत्रिक कदम उठाते हुए निजीकरण का प्रबल विरोध करेंगे।विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उप्र ने कहा है कि एक ओर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री अरविन्द कुमार शर्मा ने एक्स पर ट्वीट करके कल लिखा है कि ‘‘माननीय प्रधानमंत्री जी के आशीर्वाद से डबल इंजन की सरकार के नेतृत्व में प्रदेश के विद्युत विभाग में ऐतिहासिक कार्य हुआ है’’, वहीं दूसरी ओर पावर कॉरपोरेशन के अध्यक्ष आशीष गोयल रोज बता रहे हैं कि पावर कॉरपोरेशन भारी घाटे में आ गया है, उसे सरकारी क्षेत्र में आगे चला पाना संभव नहीं है। अतः विद्युत वितरण के निजीकरण का निर्णय लिया गया है।
पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष ने उत्पादन व पारेषण के कार्मिकों को संयुक्त उपक्रम में प्रतिनियुक्ति पर भेजने की बात कहकर उत्पादन व पारेषण के निजीकरण का भी खुलासा कर दिया है, जिससे बिजली कर्मियों में भारी गुस्सा है।
संघर्ष समिति ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और ऊर्जा मंत्री अरविन्द कुमार शर्मा जी से अपील की है कि वे प्रभावी निर्देश देने की कृपा करें जिससे विद्युत विभाग में ऐतिहासिक सुधार के बावजूद निजीकरण के मनमाने बयान देने से पावर कारपोरेशन के चेयरमैन को रोका जा सके और कर्मचारी व अभियन्ता पूर्ण मनोयोग से बिजली व्यवस्था के सुधार में लगे रहे व अनावश्यक भ्रम न उत्पन्न हो।
इलेक्ट्रीसिटी एक्ट 2003 के सेक्शन 133 का उलंघन
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि एक ओर प्रबन्धन यह कह रहा है कि इलेक्ट्रीसिटी एक्ट 2003 के सेक्शन 133 के तहत कर्मचारियों की सेवा शर्तें प्रतिकूल नहीं होंगी वहीं दूसरी ओर उत्पादन निगम व पारेषण निगम में कार्यरत अभियन्ता व कर्मचारियों को 50 प्रतिशत तक संयुक्त उपक्रम के मेजा एनटीपीसी एवं नवेली लिग्नाईट कारपोरेशन में भेजने की बात कह कर प्रबन्धन ने यह खुलासा कर दिया है कि वितरण के साथ ही उत्पादन निगम व पारेषण निगम का भी निजीकरण किये जाने का निर्णय है।कहा कि देश के किसी भी सार्वजनिक उपक्रम में 50 प्रतिशत तक प्रतिनियुक्ति का कोई उदाहरण नहीं है। एनटीपीसी की एच आर पॉलिसी में प्रतिनियुक्ति का प्राविधान ही नहीं है।
ऊँचाहार और टाण्डा बिजली घर जब एनटीपीसी को बेचे गये थे तब उप्र राज्य विद्युत परिषद के किसी कार्मिक को एनटीपीसी ने नहीं लिया था। सभी कार्मिकों को वापस आना पड़ा था।जीकरण के बाद आगरा व ग्रेटर नोएडा में भी विद्युत परिषद के किसी कार्मिक को निजी कम्पनी ने नहीं रखा। सबको वापस आना पड़ा था। अब जब बड़े पैमाने पर वितरण, पारेषण व उत्पादन का सम्पूर्ण निजीकरण किया जा रहा है तब कार्मिकों की भारी पैमाने पर छंटनी के अलावा अन्य कोई रास्ता नहीं है।
ये रहे मौजूद
संघर्ष समिति के प्रमुख पदाधिकारी राजीव सिंह, जितेन्द्र सिंह गुर्जर, गिरीश पांडेय, महेन्द्र राय, सुहैल आबिद, पी.के.दीक्षित, राजेंद्र घिल्डियाल, चंद्र भूषण उपाध्याय, आर वाई शुक्ला, छोटेलाल दीक्षित, देवेन्द्र पाण्डेय, आर बी सिंह, राम कृपाल यादव, मो वसीम, मायाशंकर तिवारी, राम चरण सिंह, मो0 इलियास, श्री चन्द, सरयू त्रिवेदी, योगेन्द्र कुमार, ए.के. श्रीवास्तव, के.एस. रावत, रफीक अहमद, पी एस बाजपेई, जी.पी. सिंह, राम सहारे वर्मा, प्रेम नाथ राय एवं विशम्भर सिंह आदि मौजूद रहे।