लिथियम के आयात पर निर्भर देशों की ऊर्जा सुरक्षा हो सकती है कमजोर
लिथियम की कमी से बैटरी उत्पादन होगा धीमा
लिथियम, जिसे "व्हाइट गोल्ड" कहा जाता है, आज की ऊर्जा क्रांति में एक महत्वपूर्ण खनिज बन गया है। लिथियम के सीमित स्रोतों पर अधिकार जमाने के लिए देशों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है। इससे राजनीतिक और आर्थिक तनाव उत्पन्न हो सकता है। आयात पर निर्भर देशों की ऊर्जा सुरक्षा कमजोर हो सकती है। इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs), रिचार्जेबल बैटरियों, और नवीकरणीय ऊर्जा भंडारण प्रणालियों के लिए इसकी मांग लगातार बढ़ रही है। हालांकि, वैश्विक स्तर पर लिथियम की सीमित उपलब्धता ने चिंता बढ़ा दी है, जिससे भविष्य में इसकी आपूर्ति में बाधा उत्पन्न हो सकती है। लिथियम की कमी से विभिन्न क्षेत्रों में कई चुनौतियां और समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। खासकर लिथियम की कमी से ऊर्जा संक्रमण और तकनीकी विकास की गति धीमी हो सकती है। इसलिए वैश्विक तौर पर सामूहिक रूप से इसके स्थायी और दीर्घकालिक समाधान खोजने की आवश्यकता है।
विश्व आर्थिक मंच (WEF) और ब्लूमबर्ग एनईएफ के अनुसार, लिथियम की बढ़ती मांग के कारण 2030 तक इसके आपूर्ति श्रृंखला में बाधा उत्पन्न हो सकती है। लिथियम खनन और उत्पादन की प्रक्रिया समय और संसाधन दोनों की मांग करती है, जिससे आपूर्ति मांग के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रही। पर्यावरणीय चिंताओं के चलते खनन परियोजनाओं को मंजूरी देना मुश्किल हो रहा है। बैटरी निर्माण के लिए उच्च गुणवत्ता वाले लिथियम की आवश्यकता आपूर्ति को और जटिल बना रही है।
लिथियम की कमी से बढ़ेगी चिंता
लिथियम-आयन बैटरियों की उच्च मांग के बावजूद, लिथियम की कमी से बैटरी उत्पादन धीमा हो जाएगा। EVs की लागत बढ़ेगी, जिससे ग्राहकों के लिए इन्हें खरीदना मुश्किल हो सकता है। कई देशों के "नेट जीरो" लक्ष्य और इलेक्ट्रिक वाहन अपनाने की योजनाएं प्रभावित होंगी। सोलर और विंड पावर जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को स्थिरता देने के लिए बड़े पैमाने पर बैटरी भंडारण आवश्यक है। लिथियम की कमी से ग्रिड-स्केल ऊर्जा भंडारण परियोजनाओं की लागत बढ़ेगी और उनके कार्यान्वयन में देरी हो सकती है। लिथियम की कमी के कारण लंबी अवधि में स्थिर ऊर्जा समाधानों की उपलब्धता प्रभावित हो सकती है।
बैटरी की लागत में वृद्धि
लिथियम की आपूर्ति कम होने से लिथियम-आयन बैटरियों की कीमत बढ़ जाएगी। स्मार्टफोन, लैपटॉप, और अन्य उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे उत्पाद महंगे हो सकते हैं। यह विशेष रूप से विकासशील देशों में तकनीकी प्रगति को धीमा कर सकता है।वैकल्पिक स्रोतों की खोज में अनियमित और तेज खनन गतिविधियां बढ़ेंगी, जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचा सकती हैं।खनन और प्रसंस्करण के लिए जल संसाधनों का अधिक उपयोग होगा, जो जल संकट को और गंभीर बना सकता है।उन्नत बैटरी तकनीकों, जैसे इलेक्ट्रिक विमानों, ड्रोन, और सस्टेनेबल ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट्स पर काम धीमा पड़ सकता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) जैसे क्षेत्रों में भी रुकावट आ सकती हैं, जो ऊर्जा भंडारण पर निर्भर हैं।
लिथियम की उपलब्धता और उत्पादन
लिथियम मुख्यतः कुछ चुनिंदा देशों में ही पाया जाता है। 2022 में वैश्विक लिथियम उत्पादन लगभग 100,000 मीट्रिक टन था। हालांकि, यूएस जियोलॉजिकल सर्वे के अनुसार, पृथ्वी पर लगभग 89 मिलियन मीट्रिक टन लिथियम रिजर्व मौजूद है। फिलहाल ऑस्ट्रेलिया विश्व का सबसे बड़ा लिथियम उत्पादक है जिसका वर्ष 2022 में वैश्विक उत्पादन का 52% हिस्सा है। उसके बाद चिली लिथियम रिजर्व का दूसरा सबसे बड़ा केंद्र, जिसमें सालाना लगभग 26% उत्पादन होता है।उसके बाद चीन और अर्जेंटीना का लिथियम उत्पादन में क्रमशः तीसरा और चौथा स्थान है।
लिथियम की बढ़ती मांग
दुनिया भर में इलेक्ट्रिक वाहनों की लोकप्रियता और रिचार्जेबल बैटरियों के उपयोग में वृद्धि के कारण लिथियम की मांग तेजी से बढ़ रही है। 2022 में लिथियम की मांग 540,000 मीट्रिक टन थी, और यह 2030 तक 3 मिलियन मीट्रिक टन तक पहुंचने की उम्मीद है।चीन और यूरोप, इलेक्ट्रिक वाहन उत्पादन और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में अग्रणी हैं, जिससे उनकी लिथियम खपत दुनिया में सबसे अधिक है।बैटरी उत्पादन में चीन की हिस्सेदारी लगभग 75% है।
भारत में लिथियम की स्थिति
भारत में लिथियम का भंडार सीमित है। हाल ही में जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले में 59 लाख मीट्रिक टन लिथियम रिजर्व की खोज की गई है। हालांकि, खनन और उत्पादन में समय लगने के कारण भारत फिलहाल आयात पर निर्भर है।भारत, चीन, ऑस्ट्रेलिया, और अर्जेंटीना से लिथियम आयात करता है। 2022 में भारत ने लिथियम आयात पर ₹8,984 करोड़ खर्च किए। लिथियम-आयन बैटरियों और अन्य ऊर्जा भंडारण प्रणालियों की उच्च लागत निवेश में महत्वपूर्ण बाधा उत्पन्न करती है। भारत में, इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) के लिए लिथियम-आयन बैटरियों की बढ़ती मांग को पूरा करने हेतु वर्ष 2030 तक लगभग $10 बिलियन (लगभग ₹75,000 करोड़) के निवेश की आवश्यकता होगी।
लिथियम-आयन बैटरियों की उच्च लागत का मुख्य कारण लिथियम जैसे दुर्लभ खनिजों की सीमित उपलब्धता और उनकी बढ़ती मांग है। विश्व आर्थिक मंच (WEF) ने चेतावनी दी है कि EV और रिचार्जेबल बैटरियों की बढ़ती मांग के कारण वैश्विक स्तर पर लिथियम की कमी हो सकती है, जिससे इन बैटरियों की लागत में वृद्धि संभावित है।इसके अतिरिक्त, भारत में ऊर्जा भंडारण प्रणालियों के विकास के लिए पर्याप्त भंडारण समाधान और अनुकूल ग्रिड प्रणालियों की कमी से अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है, जिससे नवीकरणीय ऊर्जा की निर्बाध आपूर्ति प्रभावित होती है। उच्च प्रारंभिक लागत, प्रौद्योगिकियों के निरंतर उन्नयन, और निवेश पर प्रतिफल की चिंताओं के कारण दीर्घकालिक पूंजी आकर्षित करना एक चुनौती बनी हुई है।
इन चुनौतियों के बावजूद, भारत सरकार ने ऊर्जा भंडारण के क्षेत्र में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना शुरू की है, जिसका उद्देश्य देश में उन्नत बैटरी निर्माण को बढ़ावा देना है। हालांकि, वैश्विक निवेश की तुलना में यह अभी भी कम है, और इस क्षेत्र में और अधिक निवेश की आवश्यकता है ताकि ऊर्जा भंडारण प्रणालियों की लागत को कम किया जा सके और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित किया जा सके।
भारत में ऊर्जा भंडारण में निवेश में कमी
ऊर्जा भंडारण (Energy Storage) में वैश्विक स्तर पर निवेश बढ़ रहा है, जो नवीकरणीय ऊर्जा के बढ़ते उपयोग, ग्रिड स्थिरता, और ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। हालांकि, भारत में इस क्षेत्र में निवेश अभी भी वैश्विक मानकों की तुलना में कम है।ब्लूमबर्ग एनईएफ की रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में वैश्विक ऊर्जा भंडारण में $20.8 बिलियन का निवेश हुआ, और 2030 तक यह $262 बिलियन तक पहुंचने का अनुमान है। चीन, अमेरिका, और यूरोप इन निवेशों में अग्रणी हैं। चीन ऊर्जा भंडारण में सबसे बड़ा निवेशक है। 2022 में, चीन ने अकेले $10 बिलियन से अधिक का निवेश किया, जो वैश्विक निवेश का लगभग 50% है।अमेरिका ने 2022 में लगभग $5.6 बिलियन का निवेश किया, जिसमें बैटरी ऊर्जा भंडारण और हाइड्रोजन आधारित स्टोरेज प्रौद्योगिकियां शामिल हैं। यूरोप ने 2022 में $3.8 बिलियन का निवेश किया, जिसमें बड़े पैमाने पर ग्रिड स्टोरेज परियोजनाएं शामिल हैं।
भारत में ऊर्जा भंडारण में निवेश बढ़ रहा है, लेकिन यह वैश्विक स्तर की तुलना में सीमित है। ऊर्जा और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार, 2022 में भारत ने इस क्षेत्र में केवल $500 मिलियन का निवेश किया। सरकार की PLI (Production Linked Incentive) योजना के तहत बैटरी निर्माण के लिए $2.5 बिलियन आवंटित किए गए हैं, लेकिन यह राशि वैश्विक निवेश की तुलना में अभी भी बहुत कम है।भारत में ऊर्जा भंडारण प्रौद्योगिकियों का विकास अभी भी शुरुआती दौर में है। लिथियम-आयन बैटरी और अन्य भंडारण प्रणालियों की उच्च लागत निवेश में बाधा बनती है।नीति समर्थन और तकनीकी बुनियादी ढांचे की कमी भी एक बड़ी चुनौती है।
समाधान और भविष्य की रणनीति
लिथियम की कमी को देखते हुए, कई देश इसके वैकल्पिक स्रोतों और तकनीकों की खोज में लगे है। पुरानी बैटरियों से लिथियम निकालने की तकनीकों को विकसित किया जा रहा है। सोडियम-आयन और सॉलिड-स्टेट बैटरी जैसे लिथियम के विकल्पों पर शोध किया जा रहा है। भारत और अन्य देशों ने लिथियम खनन और प्रौद्योगिकी में निवेश बढ़ाने के लिए समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। लिथियम की बढ़ती मांग और वैश्विक कमी, ऊर्जा और परिवहन क्षेत्र के लिए चुनौतीपूर्ण है। यह आवश्यक है कि भारत और अन्य देश लिथियम के उपयोग को अनुकूलित करें, वैकल्पिक प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करें, और स्थायी ऊर्जा भंडारण समाधानों को अपनाएं।
स्रोत: ब्लूमबर्ग एनईएफ (BloombergNEF), विश्व आर्थिक मंच (WEF), यूएस जियोलॉजिकल सर्वे, Business Standard Hindi, Drishti IAS
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