-30 डिग्री सेल्सियस वाले क्षेत्र में सोलर-हाइड्रोजन आधारित माइक्रोग्रिड स्थापित करने का अनूठा निर्णय
भारतीय सेना को चौबीसों घंटे 200 किलोवाट बिजली की होगी आपूर्ति
नई दिल्ली - एनटीपीसी ने भारतीय सेना के साथ मिलकर लद्दाख के चुशुल क्षेत्र में सोलर-हाइड्रोजन आधारित माइक्रोग्रिड स्थापित करने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। यह परियोजना ग्रीन हाइड्रोजन का उपयोग करते हुए भारतीय सेना को चौबीसों घंटे 200 किलोवाट बिजली की आपूर्ति करेगी, जो मौजूदा डीजल जनरेटर की जगह लेगी।
परियोजना की आधारशिला रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से रखी, जिसमें रक्षा सेवाओं के प्रमुख, एनटीपीसी के सीएमडी और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति रही। यह अनूठा सोलर-हाइड्रोजन माइक्रोग्रिड अत्यधिक ठंड (-30 डिग्री सेल्सियस) वाले क्षेत्रों में भी निरंतर बिजली आपूर्ति की गारंटी देगा।
लद्दाख की भौगोलिक और जलवायु चुनौतियों के बावजूद, एनटीपीसी इस परियोजना के माध्यम से 25 वर्षों तक इन इलाकों में तैनात भारतीय सैनिकों के लिए सस्टेनेबल एनर्जी उपलब्ध कराएगी। यह परियोजना सिर्फ ऊर्जा आपूर्ति नहीं बल्कि कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लिए भी महत्वपूर्ण कदम है। साथ ही यह आत्मनिर्भरता और स्वच्छ ऊर्जा के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेगी।कंपनी का उद्देश्य 2032 तक 60 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता हासिल करना है।
4,400 मीटर की ऊँचाई पर कई बड़ी चुनौतियाँ
कठोर मौसम परिस्थितियाँ: इस ऊँचाई पर सर्दियों के दौरान तापमान -30 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है, जिससे उपकरणों और सिस्टम के संचालन पर असर पड़ सकता है। इतनी ठंड में तकनीकी उपकरणों को सुचारू रूप से कार्यरत रखना एक बड़ी चुनौती होगी।
ऊर्जा भंडारण: अत्यधिक ठंड में बैटरी और हाइड्रोजन भंडारण प्रणालियों को उचित तापमान पर बनाए रखना महत्वपूर्ण होगा, ताकि ऊर्जा का भंडारण और उपयोग सही ढंग से हो सके।
प्रवेश और लाजिस्टिक्स: इतनी ऊँचाई और दुर्गम इलाकों में सामग्री और उपकरणों की आपूर्ति और रखरखाव चुनौतीपूर्ण हो सकती है, खासकर सर्दियों में जब बर्फबारी और अन्य प्राकृतिक कारणों से सड़कें अवरुद्ध हो जाती हैं।
सौर विकिरण में बदलाव: ऊँचाई पर सौर विकिरण का लाभ अधिक हो सकता है, लेकिन मौसम में बदलाव (जैसे बर्फबारी और बादल) के कारण लगातार सौर ऊर्जा का उत्पादन प्रभावित हो सकता है। इसका प्रभाव सोलर-हाइड्रोजन प्रणाली पर पड़ेगा।
उपकरणों की दीर्घकालिक स्थायित्व: इतनी ऊँचाई और कठोर मौसम में उपकरणों और बुनियादी ढाँचे की लंबी उम्र सुनिश्चित करना भी एक चुनौती होगी।
डीज़ल जनरेटर की जगह सोलर-हाइड्रोजन माइक्रोग्रिड
वर्तमान में जिन क्षेत्रों में डीज़ल जनरेटर का उपयोग बिजली उत्पादन के लिए किया जा रहा है, वहां अब सोलर और हाइड्रोजन से संचालित माइक्रोग्रिड सिस्टम लगाया जाएगा। इसका उद्देश्य डीज़ल जनरेटर की जगह पर्यावरण के लिए अनुकूल, स्वच्छ और स्थायी ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करना है।
मुख्य बातें
डीज़ल जनरेटर की जगह: डीज़ल जनरेटर से बिजली उत्पादन के दौरान कार्बन उत्सर्जन और प्रदूषण होता है। इसे बदलकर सोलर-हाइड्रोजन माइक्रोग्रिड का उपयोग किया जाएगा, जिससे बिजली उत्पादन बिना किसी हानिकारक उत्सर्जन के होगा।
सस्टेनेबल और क्लीन एनर्जी: सोलर पैनल दिन के समय सूर्य से ऊर्जा उत्पन्न करेंगे, और हाइड्रोजन का उपयोग एक दीर्घकालिक ऊर्जा भंडारण के रूप में किया जाएगा। यह एक स्वच्छ और सतत ऊर्जा प्रणाली होगी, जो पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुँचाएगी।
ऊर्जा भंडारण और निरंतर आपूर्ति: सोलर और हाइड्रोजन तकनीक के संयोजन से चौबीसों घंटे (24x7) बिजली की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित की जाएगी, चाहे मौसम की कोई भी स्थिति हो। डीज़ल जनरेटर के विपरीत, यह प्रणाली ऊर्जा भंडारण के रूप में हाइड्रोजन का उपयोग करेगी, जिससे बिजली की निरंतर आपूर्ति हो सकेगी।
इस परिवर्तन से कार्बन उत्सर्जन घटेगा, ऊर्जा लागत कम होगी, और पर्यावरणीय लाभ प्राप्त होंगे, जिससे इन क्षेत्रों में तैनात सैनिकों के लिए एक स्थिर और विश्वसनीय ऊर्जा स्रोत उपलब्ध होगा।
लद्दाख के उच्च सौर विकिरण और कम तापमान का होगा लाभ
उच्च सौर विकिरण: लद्दाख क्षेत्र में ऊँचाई के कारण सूर्य की किरणें अधिक तीव्र होती हैं, जिससे सौर पैनल अधिक सौर ऊर्जा प्राप्त कर सकते हैं। इसका परिणाम यह होगा कि सौर पैनल से बिजली उत्पादन की क्षमता बढ़ जाएगी।
दैनिक सौर ऊर्जा प्राप्ति: लद्दाख में मौसम साफ रहता है, इसलिए वहाँ सौर विकिरण की उपलब्धता अधिक होती है, जिससे पूरे दिन बिजली उत्पन्न करने का मौका मिलेगा।
कम तापमान से सौर पैनलों की दक्षता बढ़ेगी
बेहतर दक्षता: सौर पैनलों की कार्यक्षमता गर्म तापमान में घटती है, लेकिन लद्दाख में कम तापमान होने के कारण पैनल की कार्यक्षमता बेहतर रहेगी। सर्द मौसम में सोलर पैनल अधिक दक्षता से काम कर सकते हैं, जिससे बिजली उत्पादन और भी अधिक हो जाएगा।
हाइड्रोजन भंडारण के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ
हाइड्रोजन के भंडारण में लाभ: ठंडे तापमान में हाइड्रोजन भंडारण अधिक स्थिर और सुरक्षित होता है। लद्दाख के ठंडे वातावरण में हाइड्रोजन के रूप में ऊर्जा को लम्बे समय तक सुरक्षित रखा जा सकेगा, जिससे निरंतर बिजली आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकेगी।
डीजल की निर्भरता घटेगी
ईंधन परिवहन की कमी: लद्दाख जैसे दूरदराज के इलाकों में डीजल की आपूर्ति करना कठिन होता है, खासकर सर्दियों में जब सड़क संपर्क अवरुद्ध हो जाता है। उच्च सौर विकिरण और हाइड्रोजन स्टोरेज के उपयोग से इन क्षेत्रों को आत्मनिर्भर बनाकर डीजल की निर्भरता कम होगी।
सोलर-हाइड्रोजन के माध्यम से कार्बन उत्सर्जन में कमी
पर्यावरणीय लाभ: उच्च सौर विकिरण और हाइड्रोजन के उपयोग से कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलेगी, क्योंकि यह एक स्वच्छ और अक्षय ऊर्जा स्रोत है। इससे पर्यावरणीय प्रभाव कम होगा और लद्दाख क्षेत्र में प्रदूषण भी घटेगा।
इन अनुकूल प्राकृतिक परिस्थितियों के कारण लद्दाख में सोलर-हाइड्रोजन माइक्रोग्रिड प्रणाली अत्यधिक प्रभावी और पर्यावरण के लिए लाभकारी साबित होगी।
लेह में हाइड्रोजन बसों का ट्रायल
एनटीपीसी द्वारा हाल ही में लेह में हाइड्रोजन बसों का ट्रायल किया है। ग्रीन हाइड्रोजन फ्यूल सेल बस एक ऐसी बस है जो ग्रीन हाइड्रोजन को ईंधन के रूप में उपयोग करती है। ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों (जैसे सोलर और विंड एनर्जी) के माध्यम से पानी के इलेक्ट्रोलिसिस से किया जाता है, जिससे कोई हानिकारक उत्सर्जन नहीं होता। यह पर्यावरण के लिए बेहद अनुकूल विकल्प है।
वर्तमान में, आठ ईंधन सेल बसें – जिनमें भारतीय सेना और नौसेना के लिए एक-एक बस शामिल है वह दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में चल रही हैं, वडोदरा में चार बसें चल रही हैं और सभी में इंडियन ऑयल के हाइड्रोजन वितरण स्टेशन में ईंधन भरा जाता है। हरित हाइड्रोजन समाधानों को आगे बढ़ाने में इंडियन ऑयल पर्यावरण के अनुकूल परिवहन के विकसित क्षेत्र में अपनी अग्रणी भूमिका को और मजबूती प्रदान करता है।
मुख्य विशेषताएं
शून्य उत्सर्जन: फ्यूल सेल बस से केवल पानी और गर्मी का उत्सर्जन होता है, जिससे वायु प्रदूषण नहीं होता।
लंबी दूरी की क्षमता: ये बसें एक बार हाइड्रोजन टैंक भरने के बाद लंबी दूरी तय कर सकती हैं, जो पारंपरिक बैटरी इलेक्ट्रिक बसों की तुलना में अधिक प्रभावी होती है।
त्वरित रीफ्यूलिंग: हाइड्रोजन बसों को ईंधन भरने में कुछ ही मिनट लगते हैं, जबकि बैटरी बसों को चार्ज करने में अधिक समय लगता है।
ऊर्जा दक्षता: फ्यूल सेल से उत्पन्न बिजली को मोटर में परिवर्तित कर बस चलती है, जिससे कम ऊर्जा खर्च होती है।
फायदे:
पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ और कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मददगार।
हाइड्रोजन ईंधन की उपलब्धता बढ़ने से यह परिवहन का एक प्रमुख साधन बन सकता है।
फॉसिल फ्यूल्स पर निर्भरता को कम करने में मदद करता है।
ग्रीन हाइड्रोजन फ्यूल सेल बसें भविष्य में शहरी और अंतर-शहरी परिवहन में क्रांति ला सकती हैं, जिससे स्वच्छ और हरित परिवहन प्रणाली को बढ़ावा मिलेगा।
हरित हाइड्रोजन ईंधन सेल बस का प्रदर्शन
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने स्थायी परिवहन समाधानों को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में, भूटान के प्रधानमंत्री श्री शेरिंग तोबगे और उनके प्रतिनिधिमंडल को इंडियन ऑयल द्वारा संचालित हाइड्रोजन ईंधन वाली बस का प्रदर्शन करके हरित हाइड्रोजन गतिशीलता में भारत की प्रगति का प्रदर्शन किया।
इस कार्यक्रम में वी सतीश कुमार, अध्यक्ष और निदेशक (विपणन) के साथ-साथ पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अन्य वरिष्ठ गणमान्य लोग भी उपस्थित हुए।
प्रदर्शन के दौरान, श्री पुरी ने टिप्पणी किया कि "हरित हाइड्रोजन में भारत की प्रगति स्थायी ऊर्जा समाधानों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का प्रमाण है। हम अपनी विशेषज्ञता का विस्तार करने और भूटान जैसे क्षेत्रीय भागीदारों के साथ सहयोग करने के लिए उत्सुक हैं जिससे स्वच्छ, हरित भविष्य का मार्ग प्रशस्त किया जा सके। प्राकृतिक गैस पाइपलाइनों में हाइड्रोजन सम्मिश्रण, इलेक्ट्रोलाइज़र-आधारित प्रौद्योगिकियों के स्थानीयकरण और हरित हाइड्रोजन उत्पादन के लिए जैव-मार्गों को बढ़ावा देने के बारे में परियोजनाओं के साथ, भारत एच2 के उत्पादन और निर्यात में एक वैश्विक चैंपियन होगा और हरित हाइड्रोजन के केंद्र बनने के लिए तैयार है, जिसे भविष्य के लिए ईंधन माना जाता है, जिसमें भारत को अपने डीकार्बोनाइजेशन लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करने की अपार क्षमता है।
इस यात्रा ने हरित ऊर्जा पहल को आगे बढ़ाने के लिए भारत और भूटान के बीच साझा दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला। भूटान के प्रतिनिधिमंडल ने हरित हाइड्रोजन गतिशीलता को अपनाने में गहरी दिलचस्पी व्यक्त की, जो पर्यावरणीय स्थिरता और स्वच्छ ऊर्जा समाधानों के लिए देश की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
इंडियन ऑयल 2004 से हाइड्रोजन अनुसंधान में अग्रणी रहा है, शुरू में उसने हाइड्रोजन-सीएनजी मिश्रणों पर ध्यान केंद्रित किया था लेकिन पिछले पांच वर्षों में, इंडियन ऑयल ने भंडारण, परिवहन और विभिन्न अनुप्रयोगों वाली परियोजनाओं के साथ अपनी हरित हाइड्रोजन पहलों को आगे बढ़ाया है। विशेष रूप से, भारत का पहला हाइड्रोजन वितरण स्टेशन फरीदाबाद में इंडियन ऑयल के आर एंड डी सेंटर में शुरू है और टाटा मोटर्स के सहयोग से हरित हाइड्रोजन ईंधन सेल बसों का विकास और संचालन प्रारंभ हुआ है।
स्रोत - pib