वैश्विक बाजार में दुर्लभ पृथ्वी तत्वों को लेकर बढ़ रहा है संघर्ष
चीन का वर्चस्व कम करना नहीं होगा आसान
दुर्लभ पृथ्वी तत्वों (Rare Earth Elements - REEs) के वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा बहुत तेज़ है क्योंकि ये तत्व अत्याधुनिक तकनीकी उपकरणों और स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं के लिए महत्वपूर्ण हैं। विशेषकर चीन ने दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के खनन और प्रसंस्करण में अपनी मजबूत पकड़ बनाई है, जिससे वैश्विक बाजार चीन पर अत्यधिक निर्भर हो गया है। इस निर्भरता को कम करने के लिए सभी देश अपनी रणनीति पर काम कर रहे हैं।भारत भी ऐसे कई प्रयास कर रहा है लेकिन अभी भारत को भारी पैमाने पर दुर्लभ पृथ्वी तत्वों का आयात करना पड़ रहा है।
दुर्लभ पृथ्वी तत्व (Rare Earth Elements - REEs), 17 रासायनिक तत्वों का एक समूह हैं, जो आवर्त सारणी में पाए जाते हैं। इनमें 15 लैंथेनाइड्स (जैसे लैन्थेनम, सेरियम, प्रसीओडाइमियम, नियोडाइमियम, समेरियम, यूरोपियम, गाडोलिनियम, टर्बियम, डिसप्रोसियम, होल्मियम, एरबियम, थुलियम, इटरबियम, और लुटेटियम) और स्कैंडियम और इट्रियम शामिल होते हैं। ये तत्व इलेक्ट्रॉनिक, ऑप्टिकल और मैग्नेटिक गुणों के कारण उच्च तकनीकी उद्योगों में अत्यधिक उपयोग किए जाते हैं।
REEs के प्रमुख उपयोग
मैग्नेट्स: नियोडाइमियम और समेरियम का उपयोग उच्च-प्रदर्शन चुंबकों में किया जाता है, जो इलेक्ट्रिक वाहनों, पवन ऊर्जा टर्बाइन, और कंप्यूटर हार्ड ड्राइव में अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं।
इलेक्ट्रॉनिक्स: गाडोलिनियम, यूरोपियम, और यटेरियम का उपयोग डिस्प्ले, लाइट्स, और टेलीविजन स्क्रीन में किया जाता है।
बैटरियाँ: लैन्थेनम और सेरियम का उपयोग इलेक्ट्रिक वाहन बैटरियों और हाइब्रिड कारों में किया जाता है।कैटलिस्ट: सेरियम का उपयोग तेल शोधन और पेट्रोलियम उद्योग में कैटलिस्ट के रूप में होता है।
चिकित्सा: गाडोलिनियम का उपयोग MRI मशीनों में होता है।
ऊर्जा क्षेत्र में बढ़ रहा उपयोग
इलेक्ट्रिक वाहन और बैटरियाँ:नियोडाइमियम और प्रसीओडाइमियम जैसे तत्व अत्यधिक शक्तिशाली चुंबकों के निर्माण में उपयोग होते हैं, जो इलेक्ट्रिक वाहनों की मोटरों और बैटरियों में अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन चुंबकों के बिना, उच्च ऊर्जा दक्षता वाली मोटरें बनाना कठिन होता है।
विंड टर्बाइन:आधुनिक विंड टर्बाइनों में नियोडाइमियम-आधारित चुंबकों का उपयोग होता है। ये चुंबक हवा की ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलने के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। इन टर्बाइनों का बड़ा आकार और टिकाऊपन अक्षय ऊर्जा स्रोतों को सक्षम बनाता है।
सोलर पैनल:सोलर पैनलों में सेरियम और इट्रियम जैसे दुर्लभ पृथ्वी तत्वों का उपयोग विशेष कोटिंग्स में होता है, जो पैनल की दक्षता को बढ़ाता है। इसके अलावा, इन तत्वों का उपयोग सोलर सेल्स के निर्माण में भी किया जाता है, जिससे वे अधिक बिजली उत्पन्न कर सकते हैं।
फ्लोरोसेंट लाइट्स और LED:यूरोपियम और टर्बियम जैसे तत्व फ्लोरोसेंट लाइटिंग और एलईडी के निर्माण में उपयोग होते हैं, जो ऊर्जा क्षेत्र में कम बिजली खपत के लिए महत्वपूर्ण हैं। इसके साथ ही, ये तत्व स्क्रीन और मॉनिटर में उपयोग किए जाते हैं, जिससे ऊर्जा की बचत होती है।
दुर्लभ पृथ्वी तत्वों की प्रसंस्करण चुनौतियाँ
खनिजों का अलगाव और परिशोधन: दुर्लभ पृथ्वी तत्वों को उनकी खनिजों से अलग करना अत्यंत जटिल और महंगा कार्य है। इन खनिजों में अक्सर अन्य धातुएं भी मिलती हैं, जिन्हें अलग करना होता है।
पर्यावरणीय प्रभाव: दुर्लभ पृथ्वी तत्वों की प्रसंस्करण प्रक्रिया से उत्पन्न रसायनों और रेडियोधर्मी अपशिष्टों के कारण पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुँच सकता है। इस वजह से इस प्रक्रिया को सुरक्षित और पर्यावरणीय अनुकूल बनाना आवश्यक है।
अंतरराष्ट्रीय निर्भरता: दुर्लभ पृथ्वी तत्वों की वैश्विक आपूर्ति का अधिकांश भाग चीन द्वारा नियंत्रित होता है, जो अन्य देशों की आपूर्ति श्रृंखला को अस्थिर बना सकता है। इस कारण अन्य देशों में दुर्लभ पृथ्वी प्रसंस्करण की क्षमता को बढ़ाने की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
चीन का वर्चस्व
चीन वर्तमान में वैश्विक REEs उत्पादन का लगभग 60% से अधिक और प्रसंस्करण का लगभग 85% नियंत्रित करता है। इसकी तकनीकी विशेषज्ञता, व्यापक संसाधन और कम उत्पादन लागत इसे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाती हैं। चीन की इस वर्चस्वता ने अन्य देशों को चिंतित कर दिया है, क्योंकि तकनीकी उद्योग और सैन्य उपकरणों में REEs का उपयोग अत्यधिक बढ़ रहा है। चीन ने कभी-कभी इन तत्वों की आपूर्ति को भू-राजनीतिक हथियार के रूप में भी इस्तेमाल किया है, जैसे 2010 में जापान के साथ विवाद के दौरान।
अन्य देशों की प्रतिस्पर्धा और रणनीतियाँ
अमेरिका:अमेरिका भी दुर्लभ पृथ्वी तत्वों पर चीन की निर्भरता को कम करने के प्रयास कर रहा है। कैलिफ़ोर्निया के माउंटेन पास खदान, जो कभी दुनिया के सबसे बड़े REEs उत्पादक थे, को फिर से सक्रिय किया गया है। इसके अलावा, अमेरिका ने अपने खनन और प्रसंस्करण क्षमताओं को बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी निवेश बढ़ाया है। पेंटागन भी दुर्लभ पृथ्वी तत्वों की आपूर्ति शृंखला को मजबूत करने के लिए परियोजनाओं का समर्थन कर रहा है।
ऑस्ट्रेलिया:ऑस्ट्रेलिया भी इस प्रतिस्पर्धा में एक प्रमुख खिलाड़ी बनकर उभरा है। यह REEs का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है और लिनास रेयर अर्थ्स लिमिटेड कंपनी का मुख्यालय यहां है, जो चीन के बाहर सबसे बड़े REE उत्पादकों में से एक है। ऑस्ट्रेलिया जापान और अमेरिका के साथ मिलकर अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ा रहा है।
जापान:जापान, जिसने पहले चीन से दुर्लभ पृथ्वी तत्वों का भारी आयात किया, अब इन पर अपनी निर्भरता को कम कर रहा है। जापान ने वियतनाम और कजाकिस्तान जैसे देशों से आपूर्ति शृंखला के विविधीकरण के लिए समझौते किए हैं। इसके अलावा, जापान REE रिसाइक्लिंग तकनीकों को विकसित करने में भी निवेश कर रहा है।
यूरोप:यूरोप के देशों ने भी REEs की चीन पर निर्भरता कम करने के लिए कई योजनाएं बनाई हैं। यूरोपीय संघ ने दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के लिए एक नई आपूर्ति शृंखला विकसित करने और रिसाइक्लिंग की क्षमताओं को बढ़ाने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। स्वीडन और फिनलैंड में REEs के लिए खनन परियोजनाएं भी चल रही हैं।
कनाडा:कनाडा दुर्लभ पृथ्वी तत्वों की वैश्विक आपूर्ति में योगदान देने के लिए अपनी खनन परियोजनाओं पर काम कर रहा है। कनाडा के खनिज संसाधन में काफी संभावनाएं हैं, और यह भी चीन पर निर्भरता कम करने में मदद कर सकता है।
चीन पर निर्भरता कम करने के प्रयास
खनन के विकल्प
चीन की आपूर्ति शृंखला पर निर्भरता को कम करने के लिए कई देश, जैसे अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, और कनाडा, अपने घरेलू खनन और प्रसंस्करण क्षमताओं को मजबूत कर रहे हैं। इसके लिए नई खदानें खोली जा रही हैं और प्रसंस्करण संयंत्रों को अपग्रेड किया जा रहा है।
रिसाइक्लिंग
दुर्लभ पृथ्वी तत्वों की मांग को पूरा करने के लिए विकसित देश REE रिसाइक्लिंग पर जोर दे रहे हैं। पुरानी इलेक्ट्रॉनिक्स, बैटरियों, और अन्य उपकरणों से दुर्लभ पृथ्वी तत्वों को निकालकर उनका पुनः उपयोग किया जा रहा है। जापान इस क्षेत्र में सबसे आगे है और तकनीकी नवाचार कर रहा है।
साझेदारी और गठबंधन
चीन पर निर्भरता कम करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय साझेदारियाँ हो रही हैं। अमेरिका, जापान, और ऑस्ट्रेलिया ने मिलकर दुर्लभ पृथ्वी तत्वों की आपूर्ति को स्थिर और विविध बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं। यह वैश्विक व्यापार संतुलन बनाने के लिए एक सामरिक कदम है।
विकासशील देशों में निवेश
चीन के विकल्प के रूप में कई देश अफ्रीका और एशिया के विकासशील देशों में दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के लिए निवेश कर रहे हैं। ये देश खनन संसाधनों से संपन्न हैं और इनसे दुर्लभ पृथ्वी तत्वों का निर्यात बढ़ने की संभावना है।
भारत में दुर्लभ पृथ्वी तत्वों का उपयोग और उत्पादन
भारत में दुर्लभ पृथ्वी तत्व (Rare Earth Elements, REEs) जैसे लैंथेनम, सेरियम, प्रसीओडाइमियम, नियोडाइमियम, समैरियम, यूरोपियम और गैडोलिनियम मुख्य रूप से तटीय रेत से निकाले जाते हैं। इनमें से मोनाजाइट रेत सबसे प्रमुख स्रोत है, जो केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और ओडिशा में पाई जाती है। इन तत्वों का उपयोग उभरती तकनीक, इलेक्ट्रॉनिक्स, और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में होता है, विशेषकर विंड टर्बाइनों और इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए आवश्यक स्थायी मैग्नेट के निर्माण में।
प्रमुख तत्व और उत्पादन
भारत की राज्य-स्वामित्व वाली कंपनी, Indian Rare Earths Limited (IREL), तटीय रेत से REEs का उत्पादन करती है। इन तत्वों में नियोडाइमियम और प्रसीओडाइमियम का महत्व अधिक है, क्योंकि ये उच्च-क्षमता वाले स्थायी मैग्नेट में प्रयुक्त होते हैं। वर्तमान में IREL नियोडाइमियम का उत्पादन करती है, लेकिन उच्च गुणवत्ता वाले मैग्नेट जैसे NdFeB के निर्माण के लिए देश में व्यापक निवेश की आवश्यकता है।
भारत के ऊर्जा क्षेत्र में उपयोग
इलेक्ट्रिक वाहन निर्माण:भारत सरकार इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा दे रही है और नियोडाइमियम-आधारित मोटरों के लिए आवश्यक चुंबकों की भारी मांग है। 'फेम इंडिया योजना' और ईवी मैन्युफैक्चरिंग में निवेश से REEs की मांग बढ़ी है।
विंड एनर्जी:भारत की पवन ऊर्जा क्षमताओं को बढ़ाने के लिए दुर्लभ पृथ्वी तत्वों की आवश्यकता होती है। भारत में तमिलनाडु और गुजरात जैसे राज्यों में स्थापित विंड टर्बाइनों में नियोडाइमियम आधारित चुंबक का उपयोग होता है।
सोलर एनर्जी:भारत सरकार का सोलर एनर्जी के लिए नेशनल सोलर मिशन कार्यक्रम REEs पर निर्भर है, जो सोलर पैनल्स के निर्माण में उपयोग होते हैं। भारत सोलर पैनलों का एक प्रमुख उपभोक्ता है, लेकिन उत्पादन के लिए अभी भी बड़े पैमाने पर इन तत्वों का आयात करता है।
रेयर अर्थ एलीमेंट्स का उत्पादन:भारत में मोनाजाइट और ज़ेनोटाइम जैसे खनिजों से दुर्लभ पृथ्वी तत्व निकाले जाते हैं, खासकर केरल और ओडिशा के समुद्री तटों से। इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड (IREL) इन तत्वों के प्रसंस्करण और उत्पादन के लिए जिम्मेदार है।
भारत की रणनीति
भारत ने कुछ वर्षों से REEs उत्पादन को बढ़ाने के प्रयास किए हैं, जिसमें सरकार ने विदेशी भागीदारी और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को प्रोत्साहित किया है। इसके लिए, भारत ने 'National Mineral Exploration Policy' लागू की है, जिसका उद्देश्य देश में इन तत्वों के अन्वेषण को बढ़ावा देना है। साथ ही, सरकार ने अन्य देशों जैसे ऑस्ट्रेलिया के साथ महत्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति शृंखला में सहयोग बढ़ाया है, ताकि चीन पर निर्भरता कम की जा सके।
हालांकि भारत के पास वैश्विक स्तर पर उत्पादन में अभी भी सीमाएं हैं, लेकिन सरकार घरेलू उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए संसाधनों का अन्वेषण और प्रसंस्करण क्षमता विकसित कर रही है। उदाहरण के लिए, भारत ने जम्मू और कश्मीर में 5.9 मिलियन टन लिथियम के भंडार खोजे हैं, जो इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त, ISRO जैसे संगठनों के माध्यम से स्पेस तकनीक और डिजिटल अर्थव्यवस्था में इन तत्वों का उपयोग बढ़ाने की योजना बनाई जा रही है।
चुनौतियाँ और आगे का रास्ता
भारत में अभी इन तत्वों के पूर्ण प्रसंस्करण की क्षमता सीमित है, जिससे इसकी निर्भरता अन्य देशों पर बनी रहती है। इसके समाधान के लिए सरकार ने स्थानीय प्रसंस्करण क्षमता विकसित करने के प्रयास किए हैं, जिससे कि भारत भविष्य में रणनीतिक स्वायत्तता और आत्मनिर्भरता प्राप्त कर सके।इन पहलों के साथ, भारत का उद्देश्य न केवल अपनी आंतरिक आवश्यकताओं को पूरा करना है, बल्कि इन महत्वपूर्ण खनिजों के वैश्विक आपूर्ति शृंखला में एक प्रमुख भूमिका निभाना भी है।
दुनिया में REEs के प्रमुख उत्पादक देश
दुर्लभ पृथ्वी तत्वों का खनन सबसे ज्यादा चीन में होता है। इसके अलावा अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, म्यांमार, थाईलैंड, और भारत भी इस क्षेत्र में योगदान देते हैं। 2023 में दुनिया में कुल REEs उत्पादन 350,000 टन के करीब था, जिसमें से 70% हिस्सा चीन से आया। निम्नलिखित प्रमुख 20 देशों की उत्पादन क्षमता पर एक नज़र डालते हैं:
चीन: 240,000 टन
अमेरिका: 43,000 टन (माउंटेन पास खदान)
ऑस्ट्रेलिया: 18,000 टन (लिनास कॉर्पोरेशन)
म्यांमार: 35,000 टन
थाईलैंड: 7,100 टन
भारत: 2,900 टन
रूस: 2,600 टन
वियतनाम: 1,200 टन
ब्राज़ील: 80 टन
दुर्लभ पृथ्वी तत्वों का उपभोग करने वाले टॉप 10 देश
चीन: इलेक्ट्रॉनिक और तकनीकी उपकरणों के निर्माण में अग्रणी
अमेरिका: इलेक्ट्रिक वाहनों और सैन्य अनुप्रयोगों में
जापान: इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल और रोबोटिक्स में
दक्षिण कोरिया: डिस्प्ले और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स
जर्मनी: ऊर्जा और ऑटोमोबाइल उद्योग में
भारत: इलेक्ट्रॉनिक्स और ऊर्जा क्षेत्र
फ्रांस: इलेक्ट्रॉनिक्स और चिकित्सा उद्योग
ब्रिटेन: नवीकरणीय ऊर्जा और उच्च-प्रौद्योगिकी उद्योग
कनाडा: ऊर्जा और सैन्य अनुप्रयोग
ऑस्ट्रेलिया: इलेक्ट्रॉनिक्स और उच्च-प्रौद्योगिकी उपकरणों में
दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के बढ़ते उपयोग और सीमित उत्पादन क्षमता के कारण इन पर उच्च दबाव है, और विभिन्न देश इनकी आपूर्ति श्रृंखला में आत्मनिर्भर बनने के लिए काम कर रहे हैं। इनके तकनीकी अनुप्रयोग लगातार बढ़ रहे हैं, विशेषकर नवीकरणीय ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहनों में।
रिपोर्ट स्रोत:Geological Survey of India (GSI),Indian Rare Earths Limited (IREL),Ministry of Mines, Government of India,US Geological Survey,European Union Reports on REEs