भारत की 200 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता का महत्वपूर्ण मील का पत्थर

भारत का विद्युत क्षेत्र: 2047 तक की विकास यात्रा और लक्ष्य

भारत की 200 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता का महत्वपूर्ण मील का पत्थर

नई दिल्ली- भारत ने अक्टूबर 2024 में अक्षय ऊर्जा क्षमता में 200 गीगावाट से अधिक का आंकड़ा पार कर लिया है, जो स्वच्छ ऊर्जा की ओर एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार, देश की कुल अक्षय ऊर्जा क्षमता 201.45 गीगावाट तक पहुँच चुकी है। इस मील का पत्थर भारत के अक्षय ऊर्जा लक्ष्य को दर्शाता है और भविष्य में हरित ऊर्जा के क्षेत्र में इसके महत्व को रेखांकित करता है।

भारत का नवीकरणीय ऊर्जा परिदृश्य

देश की कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता अब 452.69 गीगावाट है, जिसमें 46.3% हिस्सा अक्षय ऊर्जा से है। प्रमुख योगदानकर्ता है:

सौर ऊर्जा: 90.76 गीगावाट, जो देश के प्रचुर मात्रा में सूर्य के प्रकाश का उपयोग करने के प्रयास का परिणाम है।
पवन ऊर्जा: 47.36 गीगावाट, जो भारत के तटीय और अंतर्देशीय पवन गलियारों की विशाल क्षमता से प्रेरित है।
जलविद्युत ऊर्जा: बड़ी पनबिजली परियोजनाओं से 46.92 गीगावाट और छोटी पनबिजली परियोजनाओं से 5.07 गीगावाट उत्पन्न होती है।

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जैव ऊर्जा: बायोमास और बायोगैस सहित 11.32 गीगावाट का योगदान करती है, जिससे ऊर्जा के स्रोतों में विविधता आती है।

अग्रणी राज्य

अक्षय ऊर्जा उत्पादन में राजस्थान, गुजरात, तमिलनाडु, और कर्नाटक शीर्ष पर हैं। राजस्थान की स्थापित क्षमता 29.98 गीगावाट है, जो इसे सूची में सबसे आगे बनाती है। गुजरात 29.52 गीगावाट और तमिलनाडु 23.70 गीगावाट क्षमता के साथ क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं, जबकि कर्नाटक 22.37 गीगावाट के साथ चौथे स्थान पर है।

सरकार की योजनाएं और पहल

भारत सरकार ने 2030 तक गैर-जीवाश्म स्रोतों से 500 गीगावाट क्षमता का लक्ष्य रखा है। इसके लिए प्रमुख योजनाओं में राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन, पीएम-कुसुम योजना, पीएलआई योजना और अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजनाएं शामिल हैं। अन्य प्रमुख पहल में नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए भूमि उपलब्ध कराने हेतु उल्ट्रा मेगा नवीकरणीय ऊर्जा पार्कों की स्थापना।अक्षय ऊर्जा की वृद्धि को प्रोत्साहन देने के लिए ऋण पत्र या अग्रिम भुगतान के माध्यम से समय पर भुगतान की व्यवस्था।विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा के लिए आरपीओ (Renewable Purchase Obligation) प्रक्षेप पथ।

200 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता पार कर भारत ने अपने जलवायु स्थिरता और ऊर्जा सुरक्षा के लक्ष्य को सुदृढ़ किया है। ये पहल भारत को एक हरित अर्थव्यवस्था की दिशा में ले जा रही हैं, जिससे ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चुनौतियों का भी समाधान हो रहा है।

 

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भारत की 2047 विद्युत क्षेत्र परिकल्पना

ऊर्जा मांग और क्षमता विस्तार

बिजली की अनुमानित मांग: 2047 तक, भारत की बिजली मांग लगभग 708 गीगावाट तक पहुंच सकती है। इसे पूरा करने के लिए 2,100 गीगावाट की स्थापित क्षमता का लक्ष्य रखा गया है।

नवीकरणीय ऊर्जा: 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता 500 गीगावाट करने का लक्ष्य है, जिससे 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन का महत्वाकांक्षी उद्देश्य साकार हो सके।

नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन

सौर एवं पवन ऊर्जा: 2047 तक 1,200 गीगावाट सौर और 400 गीगावाट पवन ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य।
भंडारण अवसंरचना: पंप स्टोरेज की क्षमता को 4.7 गीगावाट से 116 गीगावाट तक बढ़ाया जाएगा, जिससे परिवर्तनीय नवीकरणीय स्रोतों का अधिकतम लाभ उठाया जा सकेगा।

ट्रांसमिशन एवं ग्रिड आधुनिकीकरण

2030 तक 600 गीगावाट से अधिक अक्षय ऊर्जा क्षमता का समर्थन करने के लिए एक मजबूत ट्रांसमिशन नेटवर्क का निर्माण आवश्यक है। इसके तहत अपतटीय पवन फार्म और अन्य हरित प्रौद्योगिकी से बिजली के प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए 190,000 सर्किट किलोमीटर ट्रांसमिशन लाइनों का विस्तार किया जाएगा।

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तकनीकी नवाचार और अनुसंधान एवं विकास

ऊर्जा भंडारण, ग्रिड आधुनिकीकरण, ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया उत्पादन जैसे क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा दिया जाएगा, जिससे भारत वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य में अग्रणी बन सके।
वित्तपोषण एवं निवेश: 9 लाख करोड़ रुपये का निवेश अवसर प्रदान किया जाएगा, जिससे क्षेत्र में तकनीकी क्षमता और दक्षता को बढ़ावा मिलेगा।

संवहनीयता, दक्षता, और स्थानीय उद्योग का विकास

स्थानीय विनिर्माण और अनुसंधान: स्थानीय स्तर पर नवाचार, उत्पादन एवं विकास में निवेश के माध्यम से, देश में ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में ठोस कदम उठाए जा रहे हैं।

विनियामक ढांचे और नीति निर्माण: नीति सुधारों के माध्यम से निवेशकों को अधिक अवसर एवं प्रोत्साहन प्रदान किए जाएंगे।

ग्रिड अवसंरचना और कार्यबल विकास

24/7 बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए पंप भंडारण और बैटरी भंडारण जैसी नवीन भंडारण प्रणालियों को अपनाया जाएगा।
कार्यबल उन्नयन: ऊर्जा क्षेत्र की जरूरतों को पूरा करने के लिए कुशल कार्यबल का निर्माण होगा, जो भविष्य की चुनौतियों का सामना कर सके।

भारत सरकार ने कहा 

नई दिल्ली – केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण द्वारा आयोजित "2047 तक भारतीय विद्युत क्षेत्र परिदृश्य" पर विचार-मंथन सम्मेलन में नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के सचिव प्रशांत कुमार सिंह ने भारत की हरित ऊर्जा यात्रा पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि भारत में नवीकरणीय ऊर्जा (आरई) क्षमता में तेजी से वृद्धि हुई है, जो 2014 के 76 गीगावॉट से बढ़कर अब लगभग 210 गीगावॉट हो गई है। 2030 तक इसे 500 गीगावॉट तक पहुंचाने का लक्ष्य हासिल करना संभावित है। इस मील का पत्थर भारत के भविष्य के ऊर्जा लक्ष्यों के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

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सौर ऊर्जा में उछाल

श्री सिंह ने कहा कि सौर ऊर्जा क्षेत्र ने प्रभावशाली वृद्धि दिखाई है, जहां 2014 में 2.6 गीगावॉट की तुलना में अब 91 गीगावॉट की क्षमता है। यह वृद्धि पीएम सूर्य घर और पीएम-कुसुम जैसी पहलों के कारण हुई है, और इस क्षमता को 2030 तक 300 गीगावॉट तक ले जाने का अनुमान है। सौर मॉड्यूल विनिर्माण क्षेत्र में भी वृद्धि दर्ज की गई है, जो 2014 के 2 गीगावॉट से बढ़कर 60 गीगावॉट हो गई है, और 2030 तक इसे 100 गीगावॉट तक पहुंचने की उम्मीद है।

हरित हाइड्रोजन और अन्य पहल

भारत सरकार ने ग्रीन हाइड्रोजन मिशन और उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं को बढ़ावा देने का संकल्प लिया है। श्री सिंह ने बताया कि भारत ने 15 गीगावॉट इलेक्ट्रोलाइज़र क्षमता स्थापित करने के साथ 2030 तक 7.7 मीट्रिक टन हरित हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य रखा है। इसके अलावा, राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला के सहयोग से सौर सेल निर्माण और विकास में किए गए अनुसंधान कार्य भी हरित ऊर्जा उत्पादन में बड़ी भूमिका निभाएंगे।

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वित्तीय योगदान और निवेश

आरई क्षेत्र में 2014 से 2023 तक 8.5 लाख करोड़ रुपए का कुल निवेश किया गया है। एमएनआरई के रीइन्वेस्ट कार्यक्रम में, विभिन्न वित्तीय संस्थानों ने 2030 तक आरई परियोजनाओं में 25 लाख करोड़ रुपए का निवेश करने का वादा किया है।

सम्मेलन का उद्देश्य

इस कार्यक्रम का उद्घाटन केंद्रीय विद्युत मंत्री श्री मनोहर लाल खट्टर ने किया। कॉन्क्लेव में नीति निर्माता, मंत्री, और उद्योग विशेषज्ञों ने भाग लिया, जिसका उद्देश्य भविष्य में टिकाऊ और लचीले बिजली क्षेत्र के निर्माण के लिए सहयोग, ज्ञान के आदान-प्रदान, और नेटवर्किंग के अवसर प्रदान करना था।

स्रोत-PIB

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