108 हेक्टेयर वन भूमि हस्तांतरण से ही बचेगा पत्थर खनन व्यवसाय
क्रशर एसोसिएशन के चुनाव से बढ़ी उम्मीदें
नई दिल्ली- उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में मौजूद बिल्ली मारकुंडी खनन क्षेत्र की स्थिति काफी दयनीय हो चुकी है। पिछले तीन दशकों के दौरान यहाँ मौजूद खदानों में खनन की स्थिति लगभग ख़त्म हो चुकी है। लगभग ढाई दशक पूर्व ही बिल्ली मारकुंडी खनन क्षेत्र के विस्तार की आवश्यकता महसूस करते हुए तमाम प्रक्रिया शुरू की गयी थी,लेकिन अपेक्षित प्रयासों की कमी ने इस पूरी प्रक्रिया को ही पाताल में पहुंचा दिया है। प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के साथ ही बिल्ली मारकुंडी खनन क्षेत्र के लिए संजीवनी की संभावना बनने वाले वन भूमि हस्तांतरण की उम्मीदें लगातार खत्म होते चली गयी।
धीरे धीरे अब खनन करने लायक भूमि की कमी के साथ खनन नीति में अनियमितता ने पूर्वांचल के इस सबसे बड़े खनन क्षेत्र को मरणासन्न स्थिति में पहुंचा दिया है। उसपर कई प्रशासनिक विभागों की गिद्ध निगाहों ने बची कुची कसर भी निकाल दी है। ऐसी कठिन परिस्थितियों के बीच डाला बिल्ली क्रशर एसोसिएशन के लगभग 14 वर्षों बाद हुए चुनाव ने एक उम्मीद जगाई है। हालांकि बिल्ली मारकुंडी खनन क्षेत्र को जिस तरह के नीतिगत सहयोग की आवश्यकता है वह इतना आसान नहीं है लेकिन चुनाव में जीते पैनल द्वारा की गई घोषणाओं से कुछ उम्मीद लगाई जा सकती है। इस पैनल ने अपने घोषणा पत्र में वन भूमि हस्तांतरण की प्रक्रिया को पुनः शुरू करने की बात कही है जो खत्म होते खनन क्षेत्र को नया जीवन दे सकती है।
सिमटता खनन व्यवसाय
खनन लायक खदानों की लगातार हो रही कमी के साथ परमिट की कमी के कारण बिल्ली मारकुंडी पत्थर खनन व्यवसाय लगातार सिमटता जा रहा है। जिसके कारण कई बड़ी परियोजनाओं में बिल्ली मारकुंडी के उप खनिजों का उपयोग नहीं हो पा रहा है। केंद्र सरकार ने लगभग एक दशक पूर्व ही रेलवे के महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट दिल्ली हावड़ा डेडिकेटेड फ्रेंट कॉरिडोर बनाने की योजना पर जब काम शुरू किया था तभी संभावना जताई गयी थी कि इस कॉरिडोर के मुगलसराय सेक्शन के बीच भारी पैमाने पर बिल्ली मारकुंडी क्षेत्र से ही गिट्टी आपूर्ति होगी। लेकिन जब कॉरिडोर का काम चालू हुआ तब तक बिल्ली मारकुंडी खनन क्षेत्र अनियमितता का शिकार हो गया।
वर्ष 2018 के आसपास ही इस कॉरिडोर के लिए लगभग 10 लाख घन मीटर का आर्डर बिल्ली मारकुंडी खनन क्षेत्र को मिला था लेकिन ज्यादातर खदानों के बंद हो जाने के कारण यह आर्डर मध्य प्रदेश चला गया। पिछले कुछ वर्षों के दौरान रेलवे सहित अन्य सरकारी क्षेत्रों का 30 लाख घन मीटर से ज्यादा के गिट्टी आपूर्ति का ऑर्डर अन्य प्रदेशों को चला गया है । इससे प्रदेश सरकार को राजस्व का भारी नुकसान हुआ है।आने वाले दिनों में ओबरा डी,अनपरा डी सहित 60 हजार करोड़ से ज्यादा लागत की बिजली परियोजनाएं प्रस्तावित हैं। इसके अलावा एसीसी सीमेंट कम्पनी के निर्माण की कवायद शुरू हो गयी है। इन परियोजनाओं में लाखों घन मीटर गिट्टी की आवश्यकता होगी।लेकिन बिल्ली मारकुंडी खनन क्षेत्र की वर्तमान हालत से संभावना कम ही है कि अपेक्षित मांग पूरी हो पाएगी।
108 हेक्टेयर वन भूमि का होना है हस्तांतरण
बिल्ली मारकुंडी में खनन लायक भूमि की कमी को देखते हुए पत्थर खनन के नये क्षेत्रों के विकास के लिए वर्ष 2002 में खनन विभाग ने ग्राम पंचायत बिल्ली मारकुंडी,सिन्दुरिया एवं वर्दियां में स्थित 108 हेक्टेयर वन भूमि के हस्तांतरण का प्रयास शुरू किया था। यह वन भूमि खनन क्षेत्र के समीप स्थित है।शासन में निहित प्रावधानों के तहत भूमि हस्तांतरण की प्रक्रिया के तहत 108 हेक्टेयर वन भूमि के बदले 110 हेक्टेयर वैकल्पिक भूमि वन विभाग को सौंपनी थी।
इस प्रक्रिया के तहत वैकल्पिक तौर पर ग्राम जुडौली कालोनी,जुडौली प्रधानी,बड़गवां एवं रायपुर में 99 हेक्टेयर भूमि प्रभागीय वन अधिकारी कैमूर वन जीव विहार,मिर्जापुर वन प्रभाग को तथा ठाढ़पाथर में 11 हेक्टेयर भूमि रेनुकूट वन प्रभाग को दी गयी थी। उस समय वन विभाग द्वारा व्यवहारिक तौर पर उक्त भूमि को कब्जे में लेकर वन विकास भी शुरू कर दिया गया था। लेकिन तकनीकी दिक्कतों की वजह से यह प्रस्ताव वर्ष 2005 में भारत सरकार के वन मंत्रालय द्वारा रद्द कर दिया गया। उसके बाद इस प्रस्ताव को कभी ठोस गति नहीं मिल पायी।
पुनः ठोस प्रयास नहीं हुए
पिछले दो दशकों के दौरान खनन लायक भूमि की कमी लगातार बढ़ती रही लेकिन भूमि हस्तांतरण की योजना को आगे बढ़ाने के लिए ठोस प्रयास नहीं हुए। खासकर डाला बिल्ली क्रशर ओनर्स एसोसिएशन द्वारा कोई ख़ास प्रयास नहीं किये गये। वर्ष 2012 में भी वन भूमि हस्तांतरण को लेकर पुनः भारत सरकार के वन मंत्रालय से तकनीकी खामियों की जानकारी मांगी गई थी,लेकिन उसके बाद उस पर कोई भी ठोस पहल नहीं की गयी।
जुलाई 2019 में भी मीडिया में छपी एक रिपोर्ट के आधार पर भेजे गये पत्र पर प्रधानमंत्री कार्यालय सक्रिय हुआ था लेकिन यह प्रदेश सरकार से पत्राचार तक ही सीमित रह गया। पीएमओ ने तब मुख्यमंत्री कार्यालय से जवाब माँगा था जिस पर मुख्यमंत्री कार्यालय के लोक शिकायत अनुभाग द्वारा प्रमुख सचिव वन से इस सम्बन्ध में जवाब मांगा गया था। लेकिन इस पत्राचार से कोई लाभ नहीं हुआ। बहरहाल एसोसिएशन के नए अध्यक्ष अजय सिंह का ट्रेड यूनियन में बिताया गया लम्बा अनुभव और अन्य युवा पदाधिकारियों का उत्साह ठोस पहल में सहायक साबित हो सकता है।
होता रहा है भूमि हस्तांतरण
ऐसा नही है कि सोनभद्र में भूमि हस्तांतरण नहीं हो रहे हों। लगभग पांच वर्ष पहले ही प्रदेश कैबिनेट द्वारा राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) के आदेश के अनुपालन में जेपी एसोसिएट्स लिमिटेड के पक्ष में स्वीकृत खनन पट्टों से आच्छादित वन भूमि के बदले गैर वन भूमि उपलब्ध कराए जाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। कैबिनेट द्वारा वन भूमि के बदले 586.178 हेक्टेयर गैर वन भूमि हस्तांतरित करने की मंजूरी दी गयी थी। इसके अलावा निर्माणाधीन ओबरा सी तापीय परियोजना के ऐश डैम निर्माण के लिए गुरुड में प्रस्तावित राख बांध के लिए कुल 111.492 हेक्टेयर भूमि के अधिग्रहण की प्रक्रिया चल रही है।
इससे पहले 162 हेक्टेयर भूमि के अधिग्रहण का प्रस्ताव था। जिसमें ग्रामीणों की 62.86 हेक्टेयर, वन विभाग की 39.5 एवं ग्राम समाज की 22.4 हेक्टेयर भूमि शामिल थी। इसके अलावा आसपास स्थित अतिरिक्त 37.28 हेक्टेयर भूमि के अधिग्रहण की भी योजना थी। लेकिन बाद में राजस्व विभाग के सर्वे के बाद इसे घटाकर कुल 111.492 हेक्टेयर कर दिया गया। ऐसे में अगर ठोस पहल की जाए तो खनन के लिए वन भूमि हस्तांतरण की 20 वर्ष से रुकी योजना को भी पंख लग सकता है।