करोड़पतियों के संगठन की बागडोर संभालना नहीं होगा आसान

करोड़पतियों के संगठन की बागडोर संभालना नहीं होगा आसान

नई दिल्ली-देश में सबसे ज्यादा बिजली पैदा करने वाले जनपद सोनभद्र पर भारत सरकार सहित देश के बड़े उधोगपतियों की लगातार निगाहें लगी रहती हैं। इस जनपद में 1.07 लाख करोड़ रूपये से ज्यादा के निवेश को लेकर विभिन्न स्तर पर प्रक्रिया जारी है। यहाँ मौजूद पानी और इर्धन के साथ जमीनों की आसान उपलब्धता के कारण सरकारों के लिए यह सबसे प्राथमिक जगह बनी हुयी है। खासकर यहाँ मौजूद तमाम खनिजों एवं उप खनिजों की मौजूदगी जनपद को विशेष बनाती है। ऐसे में सोनभद्र में खनन से जुड़े एक कथित रूप से अमीर संगठन को लेकर फिलहाल चर्चाओं का बाजार गरम है।

प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर लगभग 50 हजार से ज्यादा लोगों को रोजगार देने वाले पत्थर खनन से जुड़े इस संगठन के लगभग डेढ़ दशक बाद होने वाले कार्यकारिणी चुनाव को लेकर सरगर्मियां तेज है। जर्जर हालत में पहुँच चुके बिल्ली मारकुंडी  खनन क्षेत्र के इस एकमात्र संगठन के चुनाव चालू सितम्बर के अंतिम सप्ताह में प्रस्तावित हैं। पिछले एक दशक के दौरान बर्बाद होते रहे खनन क्षेत्र को मूकदर्शक बनकर देखने वाले डाला-बिल्ली क्रशर ओनर्स एसोसिएशन की बागडोर संभालने के लिए 200 से ज्यादा कथित करोड़पतियों के बीच रस्सा-कशी जारी है।  

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14 सितम्बर 2019 को एसोसिएशन कार्यालय पर एकत्रित खनन व्यवसायी

 

अपनी अंतिम सांसे गिन रहे बिल्ली मारकुंडी खनन क्षेत्र को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार की नीतियाँ काफी विरोधाभासी रही हैं। शासन प्रशासन के लिए प्रयोगशाला बन चुके इस खनन क्षेत्र को बचाने के लिए अब खनन व्यवसाइयों को कभी काफी शक्तिशाली रहे डाला-बिल्ली क्रशर ओनर्स एसोसिएशन की याद आने लगी है। पिछले कई वर्षों से सुप्त अवस्था में पड़े एसोसिएशन को पुनः जिन्दा करने के लिए व्यवसायी सक्रिय हुए हैं। पिछले वर्ष ही जुलाई 2023 में एसोसिएशन की कार्यकारिणी को भंग कर चुनाव कराने का प्रयास किया गया था लेकिन चुनाव हो नहीं पाया था। बहरहाल एक बार पुनःअमीरों के इस संगठन का जिन्न अपना खेवनहार ढूढ़ने निकल पड़ा है। 

अनियमितता का शिकार खनन क्षेत्र

पिछले कई वर्षों से बिल्ली मारकुंडी खनन क्षेत्र अनियमितता का शिकार है। खनन मंत्रालय के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अंतर्गत होने के बावजूद सोनभद्र में पत्थर खनन जबरदस्त भ्रष्टाचार की चपेट में है। ओवरलोडिंग और परमिट को लेकर जिस तरह बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का बोलबाला है उससे जीरो टोलरेंस का दावा सोनभद्र में खनन के मामले में तो पूरी तरह हासिये पर है।

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फोटो-वर्ष 2016 में एक दुर्घटना के दौरान एकत्रित मजदूर 

 

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खनन परमिट के रेट में अवैध भारी वृद्धि के बावजूद शासन-प्रशासन और संगठन ने जिस तरह चुप्पी साधी हुयी है वह अत्यंत चिंताजनक है।आसमान छूते गिट्टी के रेट घर निर्माण में जुटे आम नागरिकों का सपना तोड़ रहे हैं। खनन व्यवसाइयों के बीच यहाँ जिस तरह भ्रष्टाचार की प्रतिस्पर्धा दिखती है ऐसे में डाला बिल्ली खनन क्षेत्र के इस संगठन की सक्रियता से कोई लाभ मिलेगा ये देखना काफी रोचक होगा। खासकर मजदूरों की सुरक्षा के साथ खान सुरक्षा सम्बन्धी नियमों की उड़ती धज्जियाँ संगठन के इकबाल की कठिन परीक्षा लेंगी।  

संगठन का रहा मिला-जुला जलवा 

किसी भी संगठन के पदाधिकारियों द्वारा व्यक्तिगत लाभ लिए जाने का मामला पारम्परिक है तो ऐसी परम्पराओं का आरोप डाला बिल्ली क्रशर ओनर्स एसोसिएशन के पदाधिकारियों पर भी लगता रहा है। बहरहाल इन सब आरोपों के बावजूद कभी इस संगठन का काफी दबदबा रहा है । गुजरात में आये भूकंप के दौरान भारी भरकम आर्थिक सहयोग कर राष्ट्रीय पटल पर चर्चा में आने का मामला हो या जनपद में किसी भी समाजसेवा से जुड़े कार्यक्रमों का मामला हो, सभी को खनन व्यवसाइयों की ही याद आती है।

सोनभद्र में लगभग डेढ़ दशक पहले नक्सलवाद को खत्म करने के लिए चलाये गये सामुदायिक पुलिसिंग में सबसे ज्यादा आर्थिक सहयोग जहाँ खनन व्यवसाइयों से लिया गया था, वहीँ नक्सल क्षेत्र के हजारों मजदूरों को रोजगार देकर बिल्ली मारकुंडी खनन क्षेत्र ने बड़ी भूमिका निभायी थी। बहरहाल जर्जर होते खनन क्षेत्र के विरुद्ध लायी गयी नीतियों के खिलाफ संगठन के प्रभाव को खत्म हुए डेढ़ दशक हो चुके हैं।

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वर्ष 2010 में अंतिम बार संगठन के प्रभाव से जिला प्रशासन सकते में आया था। अप्रैल 2010 में बिल्ली मारकुंडी खनन क्षेत्र में हुयी हड़ताल ने संगठन के प्रभाव को पुनः साबित किया था। इस हड़ताल से 20 हजार से ज्यादा मजदूर बेरोजगार हो गए थे जिसके कारण नक्सलवाद बढने की चिंता शासन स्तर पर महसूस की गयी थी। खनन क्षेत्र में हड़ताल के कारण 1200 से ज्यादा ट्रकें वाराणसी-शक्तिनगर मार्ग पर जहाँ खडी हो गयी थी वहीं राजस्व घाटा 50 लाख रूपये प्रतिदिन तक पहुच गया था। गिट्टी आपूर्ति नहीं होने के कारण पूर्वांचल में चल रहे विकास कार्यो एवं भवन निर्माण को भारी झटका लगा था। इसके अलावा कई प्रदेशो में रेलवे ट्रैक सहित अन्य निर्माण के लिए रेलवे विभाग को जाने वाली गिट्टी आपूर्ति पर भी प्रभाव पड़ने लगा था।

भ्रष्टाचार के खिलाफ हुयी थी हड़ताल  

वर्ष 2008 से 2012 के बीच के समयकाल को बिल्ली मारकुंडी खनन क्षेत्र में सैकड़ों करोडपति बनने का दौर माना जाता है। इस दौरान वैध और अवैध खनन के बीच संघर्ष तेज होते जा रहा था। इस दौरान ही सोनभद्र के खनन विभाग ने एम् एम्-11 परमिट की प्रति गड्डी पर कथित सुविधा शुल्क 6000 रुपए से बढाकर 1.30 लाख रूपए कर दिया था। इससे क्रशर उधमियों में भारी आक्रोश व्याप्त हो गया था। इसके अलावा सैकड़ों खदाने जिनकी लीज अवधि ख़त्म हो गयी थी उसपर शासन प्रशासन की अप्रत्यक्ष सहमती से काम जारी रहना भी आक्रोश का कारण बना।

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अप्रैल 2010 में खनन क्षेत्र की हड़ताल के दौरान डाला व्यापर मंडल द्वारा निकाला गया जुलूस

 

डाला-बिल्ली क्रसर ओनर्स एसोसिएशन इसका विरोध कर रहा था। यही नहीं वर्ष 2010 की पहली तिमाही में ही खनन विभाग ने दर्जनों क्रशर को इस लिए सीज कर दिया था कि उनके यहां से गिट्टी ले जा रहे ट्रकों के पास परमिट नहीं था,लेकिन संगठन का कहना था कि ट्रक वालों की गलती के लिए क्रशर प्लांट को सीज करना गलत था। हद तो तब हो गयी थी जब खनन विभाग ने संगठन के रवैये को देखते हुए उसके तत्कालीन अध्यक्ष और सचिव का ही क्रशर प्लांट सीज कर दिया था जिसके कारण उधमियों में जबरदस्त आक्रोश पैदा हो गया था। जिसका नतीजा हड़ताल के रूप में सामने आया था।इस दौरान काफी प्रभावशाली माने जाते रहे तत्कालीन खान अधिकारी बी.पी.यादव के खिलाफ गुस्सा भी काफी दिखा था।

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पहली बार पड़ी थी संगठन में फूट  

वर्ष 2010 में हुयी हड़ताल के दौरान एसोसिएशन में पहली बार फूट पड़ी थी। उस समय एसोसिएशन के आह्वान के बावजूद सैकड़ों क्रशर प्लांट और खदानों पर काम जारी रखा गया था। खासकर वैध अवैध खदानों की लड़ाई के बीच इस फूट के कई अर्थ निकाले गये थे। खासकर कई विरोधी उधमियों के बीच इस बात की चर्चा थी कि अध्यक्ष और सचिव के प्लांट सीज होने के कारण हड़ताल कराई गयी थी।  

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वर्ष 2010 में हड़ताल के दौरान एसोसिएशन के कार्यालय पर व्यवसाइयों के दो पक्षो में होती कहासुनी

 

 संगठन के फरमान को नजरअंदाज करते हुए सैकड़ो उधमियो ने हड़ताल करने से इनकार कर दिया था।  हालत यह हो गयी कि कुछ क्रसर उधमियों ने अलग संगठन की घोषणा भी कर दी थी। कुछ दिनों चली हड़ताल तो खत्म हो गयी थी लेकिन अलग अलग स्वार्थ को लेकर संगठन उसके बाद लगातार कमजोर होते चला गया।

2012 की बंदी में संगठन दिखा था कमजोर 

डाला-बिल्ली खनन क्षेत्र सहित जनपद के सम्पूर्ण खनन क्षेत्र को 27 फरवरी 2012 को बिल्ली स्थित एक अवैध खदान में हुए हादसे में 10 मजदूरों की मौत के बाद जिला प्रशासन ने बंद कर दिया था। अवैध खनन रोक पाने में विफल रहे जिला प्रशासन द्वारा जनपद के सभी पत्थर खनन के साथ बालू खनन भी बंद कराने के अप्रत्याशित निर्णय का एसोसिएशन ख़ास विरोध नहीं कर पाया था।इस दौरान कई बेगुनाह खनन व्यवसाइयों को क़ानूनी पचड़ों में डाला गया लेकिन एसोसिएशन ज्यादा कुछ नही कर पाया।

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वर्ष 2012 में हुए खदान हादसे का दृश्य

100 दिनों से ज्यादा समय तक बंद रहे खनन के कारण 50 हजार से ज्यादा मजदूर जहाँ बेरोजगार हो गये थे वहीं 30 करोड़ से ज्यादा के राजस्व हानि सहित विभिन्न क्षेत्रों को 150 करोड़ से ज्यादा का नुकसान उठाना पड़ा था। 100 दिनों तक बंद रहे खनन के कारण टांसपोर्ट उधोग बंदी के कगार पर चला गया था। ट्रांसपोर्ट उद्योग को 90 करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ था। इसके अलावा ओबरा डाला एवं चोपन में स्थित बैंकों को 20 करोड़ से ज्यादा का कारोबारी नुकसान  उठाना पड़ा था।

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चोपन स्थित सोन नदी के पुल पर बने टोल प्लाजा को चार करोड़ से ज्यादा का कारोबारी नुकसान उठाना पड़ा था। गिट्टी और बालू नही मिल पाने के कारण सरकारी और निजी निर्माण पूरी तरह बंद हो गये थे। गिट्टी नही मिल पाने के कारण पूर्व-मध्य रेलवे के पटरियों के नवीनीकरण के साथ अनपरा-डी का निर्माण भी प्रभावित हो गया था। बहरहाल मेसर्स विजय स्टोन प्रोडक्ट द्वारा दायर याचिका पर जिला प्रशासन के तीन माह पुराने आदेश पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अंतरिम रोक लगा दी थी। जिसके बाद पुनः खनन शुरू हो पाया था।

वन विभाग के कई मामले रहे चर्चा में

अक्टूबर 2016 में वन प्रभाग ओबरा द्वारा वनोपज का परिवहन करने वाले वाहनों से अभिवहन शुल्क वसूलने का निर्णय लिया गया था। पिछले काफी समय से वन विभाग अभिवहन शुल्क लेने के लिए प्रयासरत था लेकिन उच्चतम न्यायालय में चल रहे मामले के कारण अभिवहन शुल्क नहीं वसूल पा रहा था।बहरहाल उच्चतम न्यायालय के कथित आदेश का हवाला देते हुए वन विभाग ने प्रति गाड़ी अधिकतम रु 750 या गाड़ी में मौजूद माल के दाम का 15 प्रतिशत अभिवहन शुल्क के तौर पर वसूलने का आदेश जारी किया था।

वन विभाग ने अभिवहन शुल्क की वसूली के लिए बघमन्वा,काशी मोड़,लंगडा मोड़,सिन्दुरिया एवं तेलगुड्वा के पास बैरियर लगा लिया था।तब डाला बिल्ली क्रशर ओनर्स एसोसिएशन ने अभिवहन शुल्क वसूली का कड़ा विरोध जताया था । एसोसिएशन ने वन विभाग के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल करने की चेतावनी दी थी।एसोसियेशन के अध्यक्ष वीके शुक्ला ने तब वन विभाग के आदेश को पूरी तरह गलत बताया था।

एसोसिएशन ने तब स्पष्ट रूप से कहा था की अभिवहन शुल्क तब वसूला जाता है जब वाहन में वनोपज हो, लेकिन बिल्ली मारकुंडी खनन क्षेत्र से निकलने वाली गिट्टी वनोपज नही है। पूरे खनन क्षेत्र के पट्टे राज्य सरकार की भूमि और निजी भूमि पर है।लिहाजा इसे वनोपज नही कहा जाएगा।गलत परिभाषा के साथ आदेश लागू करने पर एसोसिएशन ने तब चेतावनी दी थी कि वन विभाग को यह वसूली नहीं करने दिया जाएगा। तब वन विभाग को अपनी वसूली रोकनी पड़ी थी।

वर्ष 2017 से 2019 के दौरान वन विभाग द्वारा जमीनों के स्वामित्व को लेकर किये गये परिवर्तन के गंभीर मामले में भी क्रशर ओनर्स एसोसिएशन कुछ ख़ास नहीं कर पाया था। 2018-19 में ही  ऐसे परिवर्तन के कारण दर्जनों क्रशर प्लांट और खनन पट्टों को बंद करा दिया गया था। जबकि इन जमीनों को कैमूर सर्वे एजेंसी के सर्वे के बाद तत्कालीन एडीजे व एआरओ द्वारा धारा चार से पृथक किया गया था। यही नहीं इन जमीनों पर वन विभाग द्वारा लगभग तीन दशक पहले खनन के लिए एनओसी जारी की गयी थी। लेकिन वर्ष भर पहले ही वन विभाग द्वारा ऐसी जमीनों को पुनः वन विभाग का बताते हुए उनकी एनओसी रद्द कर दी।इस मामले में भी संगठन कि गैरहाजिरी ने व्यवसाइयों का बड़ा नुक्वसान कराया था। यही नहीं खनन के लिए काल बने धारा 20 के प्रकाशन में हुयी देरी ने भी संगठन की निष्क्रियता को चरितार्थ किया था।  

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वर्ष 2012 में हुए खदान हादसे का दृश्य

 
अब जब संगठन के अस्तित्व को पुनः जिन्दा करने के प्रयास शुरू किये गये हैं तो इस बात की चर्चा काफी रहेगी कि नये पदाधिकारी किस परिपक्वता के साथ परम्परा से हट कर शासन और प्रशासन के सामने बिल्ली मारकुंडी खनन क्षेत्र को बचाने की बात रख पाएंगे। अहम् सवाल यह रहेगा कि मजदूरों की सुरक्षा में अनियमितता सहित खनन परमिट के अवैध मूल्य जैसे भ्रष्टाचार को खत्म करने में यह संगठन कारगर साबित होगा या नये पदाधिकारी भी व्यक्तिगत स्वार्थ या प्रशासन से नजदीकियों तक ही सीमित रह जायेंगे। 

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