भारत में पवन ऊर्जा की असीम संभावनाएँ लेकिन चुनौतियाँ भी है तमाम

भारत में पवन ऊर्जा (विंड एनर्जी) की वर्तमान स्थिति, नवीनतम प्रौद्योगिकी, प्रमुख परियोजनाएँ और लागत-लाभ विश्लेषण

भारत में पवन ऊर्जा का भविष्य और चुनौतियाँ

नयी दिल्ली - भारत अक्षय ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में एक प्रमुख देश के रूप में उभर रहा है, और इसमें पवन ऊर्जा (विंड एनर्जी) का महत्वपूर्ण योगदान है। ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों पर निर्भरता कम करने और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पवन ऊर्जा का तेजी से विस्तार हो रहा है। भारत ने 2030 तक 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा का लक्ष्य रखा है, जिसमें पवन ऊर्जा का भी अहम हिस्सा है।

भारत में पवन ऊर्जा की वर्तमान स्थिति

भारत पवन ऊर्जा उत्पादन में दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश है। विश्व पवन ऊर्जा परिषद (GWEC) के अनुसार, 2023 तक भारत की पवन ऊर्जा उत्पादन क्षमता लगभग 43 गीगावाट (GW) हो चुकी थी। यह भारत की कुल बिजली उत्पादन क्षमता का लगभग 10% हिस्सा है। गुजरात, तमिलनाडु, राजस्थान, महाराष्ट्र, और कर्नाटक जैसे राज्य पवन ऊर्जा उत्पादन में अग्रणी भूमिका निभाते हैं।

वर्ष 2022 में, भारत में 1.7 गीगावाट नई पवन ऊर्जा क्षमता जोड़ी गई, जो देश के अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों के लिए महत्वपूर्ण थी। वर्तमान में, भारत का लक्ष्य 2025 तक अपनी पवन ऊर्जा क्षमता को 60 गीगावाट तक बढ़ाना है।

पवन ऊर्जा उत्पादन के लिए भारत की स्थिति विशेष रूप से अनुकूल है क्योंकि यहां साल भर कई क्षेत्रों में तेज हवा चलती है। इसके अलावा, भारत की विशाल तटीय सीमा पवन ऊर्जा के ऑफशोर (समुद्र के ऊपर) उत्पादन के लिए भी बेहतर संभावनाएँ प्रदान करती है।

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नवीनतम प्रौद्योगिकी

बड़ी टर्बाइन और उन्नत डिजाइन
पिछले कुछ वर्षों में पवन टर्बाइन की क्षमता और ऊँचाई में वृद्धि हुई है। पहले जहां 1 से 2 मेगावाट (MW) की टर्बाइनें इस्तेमाल की जाती थीं, अब 3.5 मेगावाट से 5 मेगावाट तक की टर्बाइनें उपयोग हो रही हैं। उच्च क्षमता वाली टर्बाइनें हवा से अधिक ऊर्जा खींचने में सक्षम होती हैं और कम भूमि पर अधिक ऊर्जा उत्पादन कर सकती हैं।

ऑफशोर विंड एनर्जी
भारत में पवन ऊर्जा के क्षेत्र में एक प्रमुख प्रगति 'ऑफशोर विंड फार्म्स' हैं। ऑफशोर पवन ऊर्जा उत्पादन में समुद्र में स्थापित टर्बाइन शामिल होते हैं, जहाँ हवा की गति अधिक होती है। गुजरात और तमिलनाडु की तटरेखा पर बड़े ऑफशोर प्रोजेक्ट्स की योजना बनाई जा रही है। इस तकनीक से भारत की पवन ऊर्जा क्षमता में काफी इजाफा हो सकता है।

हाइब्रिड विंड-सोलर सिस्टम
हाइब्रिड सिस्टम्स में पवन और सौर ऊर्जा का संयुक्त उत्पादन होता है। यह तकनीक ग्रिड में बिजली की स्थिरता बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि पवन और सौर ऊर्जा की उपलब्धता दिन के विभिन्न समयों में होती है। हाइब्रिड सिस्टम्स से ऊर्जा उत्पादन की अनिश्चितता को कम किया जा सकता है।

डिजिटलाइजेशन और स्मार्ट एनालिटिक्स
डिजिटलाइजेशन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) पवन ऊर्जा के क्षेत्र में प्रगति के नए अवसर खोल रहे हैं। स्मार्ट सेंसर्स और डेटा एनालिटिक्स के माध्यम से टर्बाइन की प्रदर्शन दक्षता को मॉनिटर किया जा सकता है, जिससे रखरखाव की लागत और डाउनटाइम को कम किया जा सकता है। इसका उपयोग हवा की दिशा और गति का पूर्वानुमान लगाने के लिए भी किया जा सकता है, जिससे ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि होती है।

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प्रमुख पवन ऊर्जा परियोजनाएँ

भारत में कई प्रमुख पवन ऊर्जा परियोजनाएँ स्थापित हो चुकी हैं और नई परियोजनाओं पर भी काम चल रहा है। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण परियोजनाएँ दी गई हैं

जैसलमेर विंड पार्क, राजस्थान
भारत का सबसे बड़ा पवन ऊर्जा पार्क, जैसलमेर विंड पार्क, राजस्थान में स्थित है। इसकी कुल स्थापित क्षमता 1,600 मेगावाट से अधिक है। जैसलमेर विंड पार्क का निर्माण 2001 में शुरू हुआ और यह परियोजना भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

मुप्पंडल विंड फार्म, तमिलनाडु
मुप्पंडल विंड फार्म तमिलनाडु में स्थित है और इसकी स्थापित क्षमता 1,500 मेगावाट है। यह फार्म तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों में बिजली की आपूर्ति में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

पवन ऊर्जा परियोजनाएँ, गुजरात
गुजरात में पवन ऊर्जा के क्षेत्र में कई प्रमुख परियोजनाएँ चल रही हैं, जिनमें सुजलॉन और Sembcorp जैसी कंपनियाँ प्रमुख रूप से शामिल हैं। गुजरात में पवन ऊर्जा के विस्तार के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ हैं, जिससे यह राज्य पवन ऊर्जा में अग्रणी बन गया है।

ऑफशोर विंड फार्म प्रोजेक्ट्स
ऑफशोर पवन ऊर्जा के लिए गुजरात और तमिलनाडु के तटवर्ती क्षेत्रों में परियोजनाएँ प्रस्तावित हैं। भारत सरकार 2030 तक 30 गीगावाट तक की ऑफशोर पवन ऊर्जा उत्पादन क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य लेकर चल रही है। ये प्रोजेक्ट भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने में मदद करेंगे।

कानूनी और नीतिगत समर्थन

भारत में पवन ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए कई नीतिगत और कानूनी प्रोत्साहन उपलब्ध हैं। केंद्र और राज्य सरकारें पवन ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए कई योजनाएँ चला रही हैं।

नेशनल पॉलिसी फॉर विंड एनर्जी
भारत सरकार की राष्ट्रीय पवन ऊर्जा नीति का उद्देश्य देश में पवन ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देना और निवेशकों को आकर्षित करना है। इसके तहत पवन ऊर्जा परियोजनाओं को वित्तीय सहायता, टैक्स छूट और सब्सिडी प्रदान की जाती है।

मूल्यांकन प्रोत्साहन (Feed-in Tariff)
सरकार ने पवन ऊर्जा उत्पादन करने वाले व्यवसायों को प्रोत्साहित करने के लिए मूल्यांकन प्रोत्साहन (Feed-in Tariff) लागू किया है। इसके तहत पवन ऊर्जा उत्पादक एक निर्धारित मूल्य पर सरकार को बिजली बेच सकते हैं, जिससे उन्हें निवेश पर बेहतर रिटर्न मिलता है।

ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर
ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर परियोजना का उद्देश्य अक्षय ऊर्जा स्रोतों, जैसे पवन और सौर ऊर्जा, से उत्पादित बिजली को ग्रिड में शामिल करना है। इसके तहत एक मजबूत ट्रांसमिशन नेटवर्क स्थापित किया जा रहा है, ताकि विभिन्न राज्यों में उत्पादित अक्षय ऊर्जा को बेहतर ढंग से ट्रांसमिट किया जा सके।

अन्य नीतिगत पहल
सरकार ने पवन ऊर्जा के लिए भूमि उपलब्धता, आसान वित्तपोषण, और परियोजनाओं के तीव्र लाइसेंसिंग के लिए कदम उठाए हैं। इसके अलावा, डिस्कॉम कंपनियों को पवन ऊर्जा खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया गया है ताकि इसके उपयोग को बढ़ावा दिया जा सके।

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कायदे का अनुपालन और लाभ

लागत घटाने की तकनीकें
नई और उन्नत पवन टर्बाइन तकनीक ने उत्पादन लागत को कम किया है। पहले जहां 1 मेगावाट बिजली उत्पादन की लागत अधिक थी, वहीं अब यह लागत कम हो गई है। भारत में प्रति मेगावाट पवन ऊर्जा उत्पादन की औसत लागत लगभग ₹5-6 करोड़ है, जो अन्य ऊर्जा स्रोतों की तुलना में किफायती है।

लाभ
पर्यावरण के अनुकूल: पवन ऊर्जा का उत्पादन पूरी तरह से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से मुक्त होता है, जिससे पर्यावरणीय लाभ मिलता है।
रोजगार सृजन: पवन ऊर्जा परियोजनाओं के निर्माण, संचालन, और रखरखाव के लिए भारी संख्या में रोजगार के अवसर उत्पन्न होते हैं।
ऊर्जा सुरक्षा: भारत के लिए पवन ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करने से आयातित कोयले और तेल पर निर्भरता कम हो जाती है।
दीर्घकालिक आर्थिक लाभ: पवन ऊर्जा के क्षेत्र में किया गया निवेश लंबे समय तक आर्थिक लाभ प्रदान करता है क्योंकि एक बार टर्बाइन लगने के बाद रखरखाव की लागत कम होती है।

पवन ऊर्जा की चुनौतियाँ

भौगोलिक और स्थलाकृतिक चुनौतियाँ

भारत के कुछ हिस्सों में पवन ऊर्जा उत्पादन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ हैं, लेकिन हर क्षेत्र में यह संभव नहीं है। कुछ प्रमुख भौगोलिक चुनौतियाँ हैं। 

स्थान की सीमित उपलब्धता: पवन टर्बाइन लगाने के लिए बड़े क्षेत्रों की आवश्यकता होती है। खासकर तटीय क्षेत्रों में यह चुनौती अधिक होती है, जहाँ भूमि की सीमित उपलब्धता और लागत अधिक होती है।

ऊँचाई और हवा की दिशा: पवन ऊर्जा उत्पादन के लिए स्थिर और तेज हवा की जरूरत होती है। लेकिन भारत के सभी हिस्सों में ऐसी हवा उपलब्ध नहीं होती, जिससे पवन टर्बाइन की क्षमता प्रभावित होती है।

ग्रिड से दूरी: कई बार पवन ऊर्जा परियोजनाएँ ग्रिड से दूर स्थित होती हैं, जिससे ऊर्जा के ट्रांसमिशन और वितरण में समस्याएँ आती हैं। ग्रिड से दूरी बढ़ने पर ऊर्जा के ट्रांसमिशन में नुकसान और लागत बढ़ जाती है।Image by Claudia Hinz

 
वित्तीय और निवेश संबंधित चुनौतियाँ

उच्च प्रारंभिक लागत: पवन ऊर्जा परियोजनाओं में टर्बाइन की स्थापना, भूमि अधिग्रहण, और ट्रांसमिशन लाइनों की स्थापना के लिए बड़े निवेश की आवश्यकता होती है। छोटे निवेशकों और स्टार्टअप्स के लिए यह बड़ी बाधा हो सकती है।

लंबी अवरुद्ध अवधि: पवन ऊर्जा परियोजनाओं को मुनाफा कमाने में लंबा समय लगता है। यह अवधि कई बार वित्तीय दबाव बना सकती है, जिससे निवेश में कमी आ सकती है।

वित्तीय सहायता की कमी: भारत में पवन ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए सरकारी सब्सिडी और वित्तीय सहायता उपलब्ध है, लेकिन यह सभी क्षेत्रों और परियोजनाओं के लिए पर्याप्त नहीं है। इससे बड़े पैमाने पर परियोजनाओं के विकास में मुश्किलें आती हैं।

नियामकीय और नीतिगत चुनौतियाँ

हालांकि भारत सरकार ने नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए कई नीतियाँ बनाई हैं, फिर भी नियामकीय और नीतिगत मुद्दे परियोजनाओं के विकास में बाधा डाल सकते है। 

नीतियों की अनिश्चितता: पवन ऊर्जा से संबंधित नीतियों में बार-बार बदलाव से निवेशकों में अनिश्चितता बढ़ती है। कई बार नीतियों का उचित क्रियान्वयन न होने से परियोजनाओं पर असर पड़ता है।

पर्यावरणीय अनुमतियाँ: पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिए जरूरी पर्यावरणीय अनुमतियाँ प्राप्त करने में लंबा समय लगता है। कई बार स्थानीय समुदायों से विरोध भी देखने को मिलता है, जिससे परियोजनाएँ देरी का शिकार हो जाती हैं।

टैरिफ संबंधी मुद्दे: पवन ऊर्जा से उत्पादित बिजली की कीमत (टैरिफ) को लेकर राज्यों और केंद्र के बीच तालमेल की कमी होती है, जिससे पवन ऊर्जा परियोजनाओं के मुनाफे पर असर पड़ता है।

प्रौद्योगिकी से जुड़ी चुनौतियाँ

पवन ऊर्जा उत्पादन के लिए अत्याधुनिक तकनीकों की आवश्यकता होती है, लेकिन भारत में कुछ प्रौद्योगिकी से जुड़ी समस्याएँ सामने आती हैं:

तकनीकी विशेषज्ञता की कमी: भारत में पवन ऊर्जा के लिए आवश्यक उच्च तकनीकी कौशल और विशेषज्ञता की कमी है, जिससे परियोजनाओं की गुणवत्ता और स्थिरता पर असर पड़ता है।

प्रौद्योगिकी में धीमा सुधार: पवन टर्बाइन और अन्य उपकरणों के निर्माण में तकनीकी सुधार धीमी गति से होता है, जिससे पवन ऊर्जा की दक्षता कम होती है।

ऑपरेशन और मेंटेनेंस का खर्च: पवन टर्बाइन की मेंटेनेंस के लिए अत्यधिक लागत आती है। अगर सही समय पर मेंटेनेंस न हो, तो इससे टर्बाइन की दक्षता कम हो जाती है और उत्पादन प्रभावित होता है।

ग्रिड इंटीग्रेशन की समस्याएँ

पवन ऊर्जा का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह हरित और स्वच्छ ऊर्जा का स्रोत है, लेकिन इसे ग्रिड में शामिल करने में कई तकनीकी और व्यावहारिक समस्याएँ आती हैं:

असमान उत्पादन: पवन ऊर्जा का उत्पादन हवा की गति और दिशा पर निर्भर होता है, जो समय-समय पर बदलती रहती है। इससे ऊर्जा उत्पादन में असमानता होती है, जो ग्रिड स्थिरता के लिए चुनौतीपूर्ण साबित होती है।

स्मार्ट ग्रिड की कमी: भारत में स्मार्ट ग्रिड सिस्टम की कमी है, जिससे पवन ऊर्जा को मुख्य ग्रिड से सही तरीके से जोड़ा नहीं जा सकता। इससे ऊर्जा की सप्लाई और मांग में असंतुलन की स्थिति पैदा होती है।

ऊर्जा भंडारण की कमी: पवन ऊर्जा को सही समय पर स्टोर करने की प्रौद्योगिकी विकसित नहीं हो पाई है। इसके अभाव में अतिरिक्त ऊर्जा का इस्तेमाल सही तरीके से नहीं हो पाता।

स्थानीय समुदायों और सामाजिक चुनौतियाँ

किसी भी बड़ी परियोजना में स्थानीय समुदायों की सहमति और भागीदारी बहुत जरूरी होती है। पवन ऊर्जा परियोजनाओं में भी यह एक बड़ी चुनौती है:

भूमि अधिग्रहण: पवन टर्बाइन लगाने के लिए बड़ी मात्रा में भूमि की आवश्यकता होती है, जिससे स्थानीय किसानों और निवासियों को नुकसान हो सकता है। इसके कारण कई बार विरोध का सामना करना पड़ता है।

स्थानीय रोजगार: पवन ऊर्जा परियोजनाएँ विकसित करने में तकनीकी कौशल की आवश्यकता होती है, लेकिन कई बार स्थानीय लोगों को इन परियोजनाओं में रोजगार के अवसर नहीं मिल पाते।

स्थानीय पर्यावरणीय प्रभाव: पवन टर्बाइन से उत्पन्न शोर और अन्य पर्यावरणीय प्रभावों को लेकर भी स्थानीय समुदायों की चिंता होती है। इससे परियोजनाओं में देरी हो सकती है।

बाजार और आपूर्ति श्रृंखला से संबंधित समस्याएँ

भारत में पवन ऊर्जा क्षेत्र में तेजी से विकास हो रहा है, लेकिन कुछ बाजार और आपूर्ति श्रृंखला से संबंधित चुनौतियाँ इस विकास को प्रभावित कर रही हैं:

पवन टर्बाइन निर्माण की सीमित क्षमता: भारत में कुछ ही कंपनियाँ पवन टर्बाइन का उत्पादन करती हैं, जिससे इनकी आपूर्ति सीमित हो जाती है। इससे परियोजनाओं के समय पर पूरा होने में बाधा आती है।

विदेशी प्रौद्योगिकी पर निर्भरता: पवन ऊर्जा के लिए आवश्यक कई उपकरणों और तकनीकों के लिए भारत को विदेशी कंपनियों पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे लागत बढ़ जाती है और आपूर्ति श्रृंखला बाधित हो जाती है।

भारत में पवन ऊर्जा की अपार संभावनाओं के बावजूद इन चुनौतियों को हल करना आवश्यक है। वित्तीय निवेश, उन्नत प्रौद्योगिकी, और नीतिगत सुधारों के साथ, भारत पवन ऊर्जा क्षेत्र में एक बड़ी छलांग लगा सकता है।

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