ओवरबर्डन प्रबंधन: कोयला खनन में पर्यावरणीय और आर्थिक स्थिरता के लिए एचपीईसी रिपोर्ट
ओवरबर्डन से उत्पन्न पर्यावरणीय और सामाजिक चुनौतियां
नई दिल्ली- कोयला खनन क्षेत्रों में ओवरबर्डन (Overburden) से होने वाली कई हानियां और चुनौतियां हैं, जिन पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है। ओवरबर्डन कोयला खनन के दौरान उत्पन्न होने वाला अपशिष्ट होता है, जिसमें मिट्टी, चट्टान, और खनिज होते हैं। यह खनन के मुख्य संसाधन (कोयला) तक पहुंचने के लिए हटाया जाता है, और इसका संचय कई प्रकार की पर्यावरणीय, सामाजिक, और आर्थिक समस्याओं को जन्म देता है। कोयला खनन क्षेत्रों में ओवरबर्डन से होने वाली हानियों का प्रबंधन करना आवश्यक है। इसके लिए नवीन और स्थायी समाधान खोजे जाने चाहिए, ताकि इन पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों को कम किया जा सके।
भारत के कोयला और खान मंत्री जी. किशन रेड्डी ने नई दिल्ली स्थित सुषमा स्वराज भवन में कोयला क्षेत्र की अर्धवार्षिक समीक्षा कार्यक्रम में कोयला और खान मंत्रालय की एक महत्वपूर्ण पहल का अनावरण किया। इस पहल के तहत ओवरबर्डन के लाभकारी उपयोग पर उच्चाधिकार विशेषज्ञ समिति (एचपीईसी) की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। इस अवसर पर कोयला और खान राज्य मंत्री श्री सतीश चंद्र दुबे, कोयला मंत्रालय के सचिव श्री विक्रम देव दत्त और कोयला मंत्रालय के अन्य वरिष्ठ अधिकारी, साथ ही कोयला और लिग्नाइट पीएसयू के सीएमडी भी उपस्थित थे।
एचपीईसी रिपोर्ट का उद्देश्य कोयला क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले ओवरबर्डन को एक मूल्यवान संसाधन के रूप में पहचानना और इसके उपयोग के लिए एक व्यापक रणनीति तैयार करना है। यह रिपोर्ट "संपूर्ण खनन" दृष्टिकोण की वकालत करती है, जिसमें ओवरबर्डन के उपयोग से पर्यावरणीय स्थिरता, आर्थिक विकास और सामाजिक लाभ को एक साथ साधा जा सकता है।
ओवरबर्डन के उपयोग के संभावित लाभ
एचपीईसी की रिपोर्ट ओवरबर्डन को पारंपरिक दृष्टिकोण से हटाकर इसे एक मूल्यवान संपत्ति के रूप में प्रस्तुत करती है। इससे निम्नलिखित प्रमुख लाभों की संभावना जताई गई है:
पर्यावरणीय स्थिरता: ओवरबर्डन का पुनः उपयोग पर्यावरणीय क्षरण को कम करने में मदद करता है। इससे न केवल खनन क्षेत्र के आसपास की भूमि को फिर से उपयोगी बनाया जा सकता है, बल्कि इससे मिट्टी का कटाव और अन्य पर्यावरणीय नुकसान भी कम किया जा सकता है।
आर्थिक विकास: ओवरबर्डन में निहित खनिज संसाधनों को निकालकर निर्माण उद्योग और अन्य उद्योगों में उनका उपयोग किया जा सकता है, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।
स्थानीय रोजगार के अवसर: ओवरबर्डन के उपयोग से स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर पैदा होंगे। ओवरबर्डन से निर्मित-रेत (एम-रेत) का उत्पादन करने वाली इकाइयों की स्थापना से स्थानीय समुदायों को रोजगार के नए अवसर प्राप्त होंगे और उनकी आजीविका में सुधार होगा।
ओवरबर्डन से निर्मित-रेत (एम-रेत) का उत्पादन
एचपीईसी रिपोर्ट की एक प्रमुख विशेषता ओवरबर्डन का उपयोग करके निर्मित-रेत (एम-रेत) का उत्पादन करने की रणनीति है। एम-रेत का उपयोग निर्माण उद्योग में पारंपरिक रेत की जगह किया जा सकता है, जिससे नदी की रेत पर निर्भरता कम होगी। इस पहल का पर्यावरणीय लाभ यह होगा कि नदी की रेत के दोहन को रोका जा सकेगा, जिससे नदी तटों पर हो रहे क्षरण को कम किया जा सकेगा।
एम-रेत की व्यावसायिक बिक्री से कोयला कंपनियों को राजस्व प्राप्त होगा, जो कि एक महत्वपूर्ण आर्थिक लाभ होगा। इसके अलावा, निर्माण उद्योगों के लिए सस्ती, उच्च गुणवत्ता वाली रेत की उपलब्धता सुनिश्चित होने से स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी प्रोत्साहन मिलेगा।
ओवरबर्डन के लाभकारी उपयोग से कोयला समुदायों को होने वाले लाभ
एचपीईसी रिपोर्ट में कोयला खनन क्षेत्रों के समुदायों के लिए भी कई लाभों की संभावना जताई गई है। ओवरबर्डन का प्रसंस्करण करने से कोयला कंपनियों के लिए राजस्व में वृद्धि होगी, जबकि स्थानीय समुदायों को नई नौकरियों और संसाधनों तक बेहतर पहुंच मिलेगी।
इसके अतिरिक्त, ओवरबर्डन में अन्य महत्वपूर्ण संसाधन जैसे मिट्टी, चूना पत्थर और दुर्लभ तत्व भी होते हैं, जो बुनियादी ढांचे के विकास और अन्य उद्योगों में उपयोग किए जा सकते हैं। इन संसाधनों का उपयोग करके बुनियादी ढांचे के विकास को भी गति दी जा सकती है, जो कि राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों के अनुरूप है।
कोयला मंत्रालय की चक्रीय अर्थव्यवस्था की दिशा में पहल
एचपीईसी की सिफारिशों के आधार पर, कोयला मंत्रालय और लिग्नाइट पीएसयू ने ओवरबर्डन के लाभकारी उपयोग की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। कोयला क्षेत्र में ओवरबर्डन के कुशल उपयोग के लिए चार ओवरबर्डन प्रसंस्करण संयंत्र और पांच ओवरबर्डन से एम-रेत पायलट संयंत्र चालू किए गए हैं। इसके अतिरिक्त, छह और ओवरबर्डन प्रसंस्करण संयंत्र और एम-रेत संयंत्र की स्थापना की जा रही है, जो विभिन्न चरणों में हैं।
मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले में स्थित अमलोहरी प्लांट एक प्रमुख उदाहरण है, जहां ओवरबर्डन के प्रसंस्करण से पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देने के साथ-साथ स्थानीय समुदायों की आजीविका में सुधार किया गया है। इस संयंत्र की सफलता ने अन्य क्षेत्रों में भी ओवरबर्डन के उपयोग की संभावनाओं को प्रोत्साहित किया है।
रिपोर्ट की सिफारिशें और भविष्य की दिशा
एचपीईसी रिपोर्ट भारत के कोयला क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण बदलाव की दिशा में अग्रसर है। इस रिपोर्ट में ओवरबर्डन के उपयोग से न केवल कोयला कंपनियों को आर्थिक लाभ की संभावना जताई गई है, बल्कि यह भारत की पर्यावरणीय स्थिरता और संसाधन दक्षता लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी सहायक साबित हो सकती है।
रिपोर्ट की सिफारिशें इस दिशा में हैं कि ओवरबर्डन को कचरे के रूप में न देखते हुए, इसे एक मूल्यवान संसाधन के रूप में देखा जाए। इसके उपयोग से कोयला खनन क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को भी मजबूती मिलेगी।
कोयला क्षेत्र में ओवरबर्डन के लाभकारी उपयोग पर उच्चाधिकार विशेषज्ञ समिति (एचपीईसी) की रिपोर्ट एक महत्वपूर्ण कदम है, जो भारत के कोयला खनन क्षेत्रों में संसाधनों के अधिकतम उपयोग और अपशिष्ट को न्यूनतम करने की दिशा में एक प्रभावशाली पहल है। इस रिपोर्ट के आधार पर कोयला मंत्रालय की विभिन्न परियोजनाओं और प्रयासों से न केवल कोयला कंपनियों को आर्थिक लाभ मिलेगा, बल्कि पर्यावरणीय स्थिरता और स्थानीय समुदायों की आजीविका में भी सुधार होगा।
ओवरबर्डन से जुड़ी प्रमुख हानियाँ
1. पर्यावरणीय क्षरण
भूमि की क्षति: ओवरबर्डन को हटाने से बड़ी मात्रा में भूमि नष्ट होती है। ओवरबर्डन के विशाल ढेर कृषि भूमि, जंगलों और प्राकृतिक आवासों को नष्ट कर सकते हैं, जिससे स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र प्रभावित होता है।
मिट्टी का क्षरण: ओवरबर्डन हटाने से भूमि की उर्वरता कम हो जाती है। जब ओवरबर्डन को किसी क्षेत्र में छोड़ा जाता है, तो वह मिट्टी की गुणवत्ता को प्रभावित करता है और भूमि को बंजर बना देता है। इससे खेती के लिए भूमि की उपलब्धता घटती है।
जल स्रोतों का प्रदूषण: ओवरबर्डन के अपशिष्ट में कई विषैले पदार्थ और भारी धातुएं शामिल हो सकती हैं, जो बारिश के समय जलस्रोतों में प्रवेश कर सकती हैं। इससे नदियों, झीलों और भूजल में प्रदूषण फैलता है, जिससे स्थानीय समुदायों के लिए पानी की गुणवत्ता खराब हो जाती है।
2. वायु और ध्वनि प्रदूषण
धूल का उत्सर्जन: जब ओवरबर्डन को हटाया और संग्रहीत किया जाता है, तो इसके साथ धूल के कण वायुमंडल में फैलते हैं। यह धूल हवा की गुणवत्ता को खराब करती है और आसपास के क्षेत्रों में सांस संबंधी बीमारियां, जैसे अस्थमा और ब्रोंकाइटिस, होने का खतरा बढ़ाती है।
ध्वनि प्रदूषण: ओवरबर्डन हटाने के दौरान इस्तेमाल होने वाले भारी मशीनों और विस्फोटकों से उत्पन्न ध्वनि प्रदूषण न केवल श्रवण शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, बल्कि वन्य जीव-जंतु और आसपास के स्थानीय निवासियों के जीवन पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है।
3. जल निकासी और बाढ़ का खतरा
ओवरबर्डन के विशाल ढेर प्राकृतिक जल निकासी को बाधित करते हैं, जिससे बारिश के मौसम में जलभराव और बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा, यह जल निकासी के रास्तों को अवरुद्ध करके आस-पास की आबादी को प्रभावित करता है।बाढ़ से भूमि और संरचनात्मक क्षति के साथ-साथ स्थानीय जलस्रोतों में गाद (silt) और अन्य अपशिष्ट का संचय होता है, जिससे जलधारा और कृषि योग्य भूमि की उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
4. जैव विविधता पर असर
प्राकृतिक आवासों का विनाश: ओवरबर्डन के ढेर स्थानीय वनस्पति और जीवों के प्राकृतिक आवासों को नष्ट कर देते हैं। इससे वन्य जीवों की आबादी में गिरावट आती है, और कई प्रजातियों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगता है।
पारिस्थितिकी असंतुलन: ओवरबर्डन की उपस्थिति से पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन पैदा होता है। यह न केवल स्थानिक प्रजातियों के लिए खतरा है, बल्कि जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय अस्थिरता का भी कारण बनता है।
5. स्थानीय समुदायों पर सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
आवास और आजीविका पर असर: कोयला खनन और ओवरबर्डन हटाने के कारण ग्रामीण और आदिवासी समुदायों को उनके घरों और कृषि भूमि से विस्थापित किया जाता है। इससे उनकी आजीविका छिन जाती है और वे अपने पारंपरिक जीवन से कट जाते हैं।
स्वास्थ्य पर प्रभाव: ओवरबर्डन के संपर्क में आने से स्थानीय निवासियों को स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं। धूल, प्रदूषित जल, और विषैले अपशिष्ट के कारण गंभीर बीमारियों, जैसे त्वचा रोग, कैंसर, और फेफड़ों से संबंधित बीमारियों का खतरा बढ़ता है।
समुदायों में असंतोष: जब कोयला खनन से जुड़ी गतिविधियों के कारण स्थानीय निवासियों की जमीन और संसाधनों पर अधिकार कम होता है, तो यह सामाजिक असंतोष और संघर्ष को जन्म दे सकता है। इससे स्थानीय सामुदायिक ढांचा कमजोर होता है और विकास की प्रक्रियाओं में बाधा उत्पन्न होती है।
6. लैंडफिल और भूस्खलन का खतरा
ओवरबर्डन के ढेर अगर ठीक से प्रबंधित नहीं किए जाते हैं, तो वे लैंडफिल के रूप में विकसित हो सकते हैं, जो समय के साथ भूस्खलन का कारण बन सकते हैं। खासकर बारिश के मौसम में, यह खतरा और बढ़ जाता है, जिससे आसपास की बस्तियों और बुनियादी ढांचे को गंभीर नुकसान हो सकता है।
7. जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव:
कार्बन उत्सर्जन:ओवरबर्डन हटाने की प्रक्रियाओं में इस्तेमाल होने वाले उपकरण और विस्फोटक बड़ी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करते हैं, जो वैश्विक तापमान वृद्धि और जलवायु परिवर्तन में योगदान देते हैं।
वनों की कटाई: ओवरबर्डन के ढेर के लिए भूमि तैयार करने के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई होती है, जिससे कार्बन सिंक (carbon sink) की क्षमता में कमी आती है और वायु में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती है।
8. ओवरबर्डन प्रबंधन की लागत
ओवरबर्डन को हटाना और संग्रहीत करना खनन कंपनियों के लिए एक महंगी प्रक्रिया है। इसकी उचित प्रबंधन लागत में मशीनरी, श्रम, और भूमि की पुनःस्थापना के लिए भारी निवेश की आवश्यकता होती है। कई बार, यह खर्च इतनी बड़ी मात्रा में होता है कि इससे खनन परियोजनाओं की आर्थिक व्यवहार्यता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
कोयला खनन क्षेत्रों में ओवरबर्डन से होने वाली हानियों का प्रबंधन करना आवश्यक है। इसके लिए नवीन और स्थायी समाधान खोजे जाने चाहिए, ताकि इन पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों को कम किया जा सके। विशेषज्ञ समिति (एचपीईसी) की रिपोर्ट में ओवरबर्डन के फायदेमंद उपयोग की जो सिफारिशें की गई हैं, वे इन समस्याओं का समाधान प्रस्तुत कर सकती हैं।